छंदमुक्त काव्य
फागुनी बहार
“छंदमुक्त काव्य”
मटर की फली सी
चने की लदी डली सी
कोमल मुलायम पंखुड़ी लिए
तू रंग लगाती हुई चुलबुली है
फागुन के अबीर सी भली है।।
होली की धूल सी
गुलाब के फूल सी
नयनों में कजरौटा लिए
क्या तू ही गाँव की गली है
फागुन के अबीर सी भली है।।
चौताल के राग सी
जवानी के फाग सी
हाथों में रंग पिचकारी लिए
होठों पर मुस्कान नव नवेली है
फागुन के अबीर सी भली है।।
लहराती कदली सी
सावन की बदली सी
वसंत को आँचल में लिए
फूल से पहले की खिली कली है
फागुन के अबीर सी भली है।।
महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी