कविता

होली का नशा

 

होली का नशा

सुनो! सुनो !सभी सुनो !!!
आ गयी है होली ,
पहले था ये त्यौहार
प्यार का रंगों का ,
आज है हम नशेडी ,
भंगेडियों का …..,
होती दो दिन की छुट्टी ,
रहने ,बिताने को परिवार ,
संग लम्हें खुशियों के ,
हम तो ये सब भूल कर ,
दारू खरीद लेते है ,
दो की जगह चार दिन की ,
खुद तो खुब पीते है ,
साथ में शर्बत में मिला ,
नही पीने और,अौरतों को भी ,
पिलाते है ……
पी कर दारू ,भांग ,
हम वो उत्पात करते है ,
जिसका कोई हिसाब नही ,
कई बार तो इतनी पी लेते है ,
नाली की खुशबू ,कुत्ते के स्पर्श ,
किसी अपने का प्यार समझ लेते है ,
पीने के बाद उनको भी ,
रंग लगाने छुने में ,
कामयाबी मिल जाती है ,
जो सादे में नही मिलती
कभी तो उन देवियों से ,
मार खाते है ,
बचने के लिये भागते ,
होली है पीने ,मस्ती का त्यौहार,
.
एक होली पर खुब हुड़दंग कर ,
शाम को घर पहुँच गये ,
हमसे पहले हमारे काम पहुंच गये ,
बस फिर क्या था ,
पत्नी तो पहले से हमारे लिये ,
बन चंडी ,काली तैयार
कहाँ थे ? क्या खाया ?
इन बातों ने पारा उनका ,
बहुत चढ़ा दिया …..
फिर क्या था ….
खुब हुई हमारी धुलाई …
खाने को भी कुछ नही मिला .
बदन दर्द से टूट रहा था …
अगले दिन होश आने पर ,
सारी बातें मालुम हुई ,
तोबा करी ऐसी होली ,
दुबारा नही खेलु ….

सारिका औदिच्य

*डॉ. सारिका रावल औदिच्य

पिता का नाम ---- विनोद कुमार रावल जन्म स्थान --- उदयपुर राजस्थान शिक्षा----- 1 M. A. समाजशास्त्र 2 मास्टर डिप्लोमा कोर्स आर्किटेक्चर और इंटेरीर डिजाइन। 3 डिप्लोमा वास्तु शास्त्र 4 वाचस्पति वास्तु शास्त्र में चल रही है। 5 लेखन मेरा शोकियाँ है कभी लिखती हूँ कभी नहीं । बहुत सी पत्रिका, पेपर , किताब में कहानी कविता को जगह मिल गई है ।