मेरी भावना
श्री नवकार महामन्त्र का नित्य जप कर जिन धर्म को करूं स्वीकार।
विश्व प्रेम शांति अहिंसा अपरिग्रह शाकाहार तप दान शील का करूं प्रचार।।
अनित्य अशरण संसार एकत्व अन्यत्व अशुचि भावनाऐं।
आस्रव संवर निर्जरा लोक बोधि-दुर्लभ धर्म भावनाऐं।।
इन बारह भावनाओं का करता रहूं जीवन में सदैव पालन।
निर्मल पवित्र सरल निष्काम निःस्वार्थ बनता रहे बस जीवन।।
उत्तम क्षमा उत्तम मार्दव उत्तम सत्य उत्तम आर्जव उत्तम शौच।
उत्तमसंयम उत्तमतपो उत्तमत्याग उत्तमअकि´चन उत्तमब्रहमचर्य।।
धर्म के इन दस लक्षणों को करूं अपने जीवन में धारण।
धर्ममार्ग से विचलित नहीं कर पाऐं मुझे कोई भी सांसारिक कारण।।
जीवन में मिल जाएगा शांति संतोष हिम्मत ऊर्जा का स्त्रोत।
प्रातः सायं अगर नियम से पाठ कर सकूं संकटहारी श्री भक्तामर स्त्रोत।।
मुख्तारजी की 44 पंक्तियों की सर्वधर्म प्रार्थना है ‘‘मेरी भावना‘‘।
‘‘मेरी भावना‘‘ के सत्यमार्ग पर चल सकूं ईश्वर से बस मेरी यही प्रार्थना।।
निर्धन मेधावी बेटियों की उच्च शिक्षा हेतु करता रहूं पत्रं पुष्पं सहायता।
समय कैरियर प्रबंधन के पाठ पढ़ाकर बढ़ाऊं बच्चों की आत्मनिर्भरता।।
स्वार्थ अहंकार झूठ राग द्वेष लोभ लालच बैर पाप को ठुकराऊं।
सत्य दया परोपकार मैत्री संतोष ज्ञान सेवा शांति को अपनाऊं।।
दिलीप का दिल से जिन मार्ग पर चलते रहने का है संकल्प।
मनुष्य जीवन सार्थक सफल करने हेतु जिन मार्ग सर्वश्रेष्ठ विकल्प।।
— दिलीप भाटिया