शहीद दिवस (23 मार्च) पर कविता
धरती माँ के लाल भगत थे ,वीर अमर बलिदानी थे ।
आजादी के दीवाने थे ,स्वतंत्रता सेनानी थे ।
हँसते हँसते गले लगाकर ,मृत्यू का मुख चूमा था ।
भारत माँ के जयकारों से ,वीरों का मन झूमा था ।
रँग दे बसन्ति चोला मेरा , गीत यही होठों पे था ।
खून बड़ा जोशीला उनकी ,भरा हुआ नस- नस में था ।
झुके नहीं सर भले जाए कट ,ऐसे वो अभिमानी थे ।
धरती माँ के लाल भगत थे ,वीर अमर बलिदानी थे ।
शौर्य अरु साहस की मूरत,आँखों में भर अँगारे ।
ओढ़ कफ़न केसरिया तन पर ,अंग्रेजों को ललकारे ।
राजगुरु ,सुखदेव,भगतसिंह ,नमन करो उन वीरों को ।
जान हथेली पर धर निकले ,धरती के उन धीरों को ।
तिलक करें माटी मस्तक पर ,स्वप्न हृदय अरमानी थे ।
धरती माँ के लाल भगत थे ,वीर अमर बलिदानी थे ।
हिम्मत उनकी परख परख कर ,शासन अंग्रेजी डोला ।
आजादी की अलख जगाने ,दिल दीवानों का डोला ।
सच के ही दम पर बलिदानी ,फाँसी पर चढ़ जाते हैं ।
इतिहास में स्वर्ण अक्षरों से ,नाम नवल गढ़ जाते हैं ।
युगों युगों तक जग गायेगा ,कर्म किये सम्मानी थे ।
धरती माँ के लाल भगत थे ,वीर अमर बलिदानी थे ।
— रीना गोयल ( हरियाणा)