नई आशा नये सपने लाई है सांझ की बेला।
मानो मंजिल की अंगड़ाई है सांझ की बेला।
कदम थिरक रहे हैं उमंगें सितार हुयीं,
हमने सात सुरों से सजाई है सांझ की बेला।
सारा दिन बीत गया जीवन की भागमभाग में,
तब कहीं जाके मुस्कुराई है सांझ की बेला।
कितने मधुमास देखे प्रीतम की पलकों पे,
बहुत दूर कहीं गुनगुनाई है सांझ की बेला।
बचपन भोर यौवन है तपती दोपहर,
अंतिम पड़ाव की परछाईं है सांझ की बेला।
— ओमप्रकाश बिन्जवे ” राजसागर “