गजल
मैंने तुम दोनों को सोचा तो उभर आई गजल
उँगलियाँ काँपीं तो कागज पे उतर आई गजल
गुफ्तगू अपनों से करने को गजल कहते हैं
इतना कहने के लिए छोड़ के घर आई गजल
साधना ध्यान भजन योग इबादत पूजा
इतने घाटों में नहायी तो निखर आई गजल
मुझको विश्वास है तुम सीख के आओगे जरूर
वो हुनर जिसकी दबे पाँव खबर लाई गजल
‘शान्त’ गंगा में हिमालय में हर इक बूँद में
तुम ही तुम आये नजर या नजर आई गजल
— देवकी नन्दन शान्त