आखिर देश में गरीबी कब
प्रत्येक देश में अमीर और गरीब दो वर्ग हमेशा सक्रिय रहते है लोकतंत्र हो या राजतंत्र इनमें कितने भी प्रयास करे , अमीरी तथा गरीबी कभी समाप्त नहीं की सकती क्योंकि यदि माना एक तरफ ग़रीबी समाप्त हो जाये तब सभी लोग अमीर हो जायेंगे तथा कोई भी व्यक्ति मजदूरी करने के लिये तैयार नहीं होगा जब कोई भी व्यक्ति मजदूरी या कोई भी कार्य नहीं करेगा तो देश की सारी व्यवस्थायें चौपट हो जायेंगी अर्थात देश में अकाल की स्थिति आ जायेगी लोग खाने को तरसने लगेंगे इसलिए देश को सुचारू रूप से चलाने तथा अधिक से अधिक विकास करने के लिये लोगों की जरूरतों में कुछ न कुछ कमी करनी होगी अन्यथा यदि सभी लोगों को जरूरतों की चीजे समय से मिलती रहेंगी वे काम क्यों करेंगे ? इस प्रकार दूसरी तरफ यदि अमीरी खत्म हो जाये तब सभी लोग गरीब हो जायेगें अर्थात सारी प्रजा एक पंक्ति में आ जायेगी कोई भी अत्यधिक जोखिम लेने के लिये तत्पर नहीं होगा और जब तक कोई व्यक्ति जोखिम नहीं लेता तब तक उस व्यक्ति का पूर्ण विकास होना असंभव होता है क्योंकि एक अमीर व्यक्ति ही कोई बड़ा उद्योग लगाकर गरीबों को काम दे सकता है और साथ ही साथ उद्योग से वही प्राप्त माल देश की जनता उपभोग करती है यदि सभी व्यक्तियों को एक ही श्रेणी में लाया गया तब भी देश की सारी व्यवस्थायें चौपट हो सकती हैं ।
इसलिये देश की व्यवस्थाओं को सुचारू रूप से चलाने के लिये दोनों वर्गों में संतुलन की स्थिति कायम करनी होनी अर्थात न ही ज्यादा गरीब और न ही अधिक अमीर , यदि कोई व्यक्ति अत्यधिक अमीर हो जाता है तब उसको तानाशाह बनने की संभावना होती है तथा यदि कोई व्यक्ति अत्यधिक गरीब हो जाता है तब उसको शरीर के संतुलन के अनुसार पोषण न मिल पाने के कारण उसकी सभी शारीरिक तथा मानसिक प्रक्रियाये सुचारू रूप से कार्य करने में असमर्थ होने लगती है और वह ठीक तरह से कोई भी कार्य नहीं कर पाता जिससे उसके परिवार पर बहुत बुरा प्रभाव पडने लगता है साथ ही साथ देश की अर्थव्यवस्था तथा सामाजिक व्यवस्था को भी बहुत अधिक नूकसान उठाना पडता है तभी तो प्राचीन काल से आज तक की सभी सरकारें अमीर तथा गरीब वर्गों को कम करने की कोशिशे को छोड़ दोनों को संतुलित करने का भरपूर प्रयास करती रहीं हैं जिसका प्रभाव आज हमें देश की सभी व्यवस्थाओं पर देखने को मिलता है ।
हमारे देश में , दुनिया के अन्य देशों की अपेक्षा अमीर तथा गरीब वर्गों में बहुत अधिक अंतर देखने को मिलता है जिसका प्रभाव भी आज की व्यवस्थाओं में देखने को मिल रहा है लेकिन ये अंतर इतना अधिक अभी तक क्यों है ? आइये इस प्रश्न का उत्तर खोजने की कोशिश करते हैं- हमारा देश परंपरागत नियमों को मानने वाला देश है यहाँ के निवासी आज भी अपनी पुरानी परंपरा को भूले नहीं हैं प्राचीन काल में ये परंपराये अर्थात ऐसे नियम जो क्रमबद्ध तथा सुव्यवस्थित ढंग से तो बने हैं लेकिन ये नियम आज के शिक्षित समाज से बिल्कुल परे है इसलिये आज का शिक्षित समाज अंधविश्वास को गलत मानता है क्योकिं हम प्राचीन परंपराओं के कार्य को सही तरह से समझ नहीं पाते ये प्राचीन परंपराये आज के विग्यान के समान हीं हैं लेकिन हम सब ऐसा कदापि नहीं मानते और यही सत्य है ।यदि हम इन प्राचीन परंपराओं के कार्य को ठीक तरीके से समझ जायें तो हम अंधविश्वास के नाम पर बदनाम न होंगे तथा हम भी आज के वैज्ञानिक युग के समाज के बराबर के अधिकारी होंगे । तभी तो हमारा एक शिक्षित वर्ग आज के नियम अनुसार बढता ही जा रहा है और जो अशिक्षित वर्ग अर्थात परंपरा वादी वर्ग पिछड़ता ही जा रहा है लेकिन जैसे जैसे हम जागते जा रहें हैं वैसे ही हम सब परंपरा वादी प्रक्रिया अपनाने की कोशिश कर रहें हैं क्योंकि परंपरा वादी प्रक्रियाये प्रकृति से जुड़ी होती हैं और प्रकृति से संतुलन बना रहे इसलिये परंपरा वादी नियम बनाये गये हैं ।
आज हमारे देश में गरीब वर्गों की संख्या अधिक से अधिक बढती ही जा रही है देश में गरीब वर्ग क्यों बढ रहे हैं इसके अनेक कारण हैं –
पहला , हमारे देश में व्यक्तियों की संख्या बढ रही है न कि संसाधनों की , यदि व्यक्तियों के साथ साथ संसाधनों की संख्या बढाई जाये तो प्रति व्यक्ति को काम करने का मौका जरूर मिल सकता है , दूसरा , हमारे देश की शिक्षा प्रणाली बहुत लोचदार है इसलिये आज शिक्षा का मतलब सिर्फ एक कागजी टुकड़ा माना गया है न कि जीवन जीने का साधन इसलिये हमारे देश में प्रतिवर्ष लाखों बच्चे अपनी पढाई पूरी करके वापस घर आते हैं तो क्या इन लाखों बच्चों की नौकरी का बंदोबस्त किया जा सकता है यदि इन्हीं बच्चों की शिक्षा में कुछ जटिलता होती तब इन लाखों बच्चों की संख्या की जगह हजारों की संख्या होती और इन हजारों बच्चों की नौकरी का बंदोबस्त किया जा सकता है ।तथा इसी लोचदार शिक्षा के कारण आज देश का प्रत्येक नौकरशाह सिर्फ पैसे के लिये काम करता है न कि व्यक्तियों की जरूरतों को पूरी करने के लिये तभी तो देश से भ्रष्टाचार अपनी जगह नहीं छोड़ने को तैयार होता और तीसरा , विचारों का परिवर्तन अर्थात जब तक हम अपने विचारों को परिवर्तित नहीं करेंगे तब तक हमारा दिमाग संतुलित नहीं होगा और हम सब डिप्रेशन में चले जाते हैं तथा अपनी क्षमताओ को भूल जाते हैं जिसमें हमारे शरीर की प्रक्रियाओं की कार्यक्षमता कम हो जाती है और हम गरीब की श्रेणी में आ जाते हैं ।चौथा संवेदना, जी हाँ गरीबी से मुक्त होने का सबसे महत्वपूर्ण कदम है हम सब इंसान हैं सभी इंसान में एक ही जीवात्मा है तभी तो हम एक दूसरे के विचारों को समझने में समर्थ होते हैं और यदि हम एक दूसरे के विचारों की बात तथा सांकेतिक तथ्यों से समझकर उनके विचारों को समझ रहें हैं तब हमें उनकी मदद जरूर करनी चाहिये अगर ऐसा होता है तो किसी भी देश के परिवारों से गरीबी का नामो-निशान खत्म हो जायेगा लेकिन ऐसा होगा नहीं क्योंकि लोगों के दिमाग में ऐसी दीवारें बना दी जाती हैं जो मानवीय संवेदनाओ को पार नहीं करने देती और लोग अपने अपने को तैयार करने में लगा रहता है ।इन सभी कारणों से हमारे देश का प्रत्येक परिवार ग्रसित है और अपने आप को बेरोजगार तथा गरीब की श्रेणी में रखना चाहता है ।
लेकिन यदि वास्तव में गरीबी रूपी कचरे की सफाई करनी है तब हमें गरीबी रूपी कचरा फैलाने वाले पेड़ को जड़ से काटना होगा तभी गरीबी का अस्तित्व मिट सकता है वरना तना काटने से तो पेड़ दोबारा हरा हो सकता है ।