गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल

किस तरह तेरे हवाले वो दिलो जां कर दें ।
मन की बस्ती को भला कैसे बियाबां कर दें ।।

ये शहीदों की अमानत है बचाओ इसको ।
मुल्क टुकड़ो में न ये देश के नादां कर दें ।।

तीरगी देखिए मुद्दत से यहां कायम है ।
हो सके आप मेरे घर में चरागां कर दें ।।

अब हवाओं की अदावत को समझ ले माझी ।
वो समन्दर में न पैदा कहीं तूफ़ां कर दें ।।

जात-मज़हब के ही मुद्दों पे टिकट हासिल कर ।
ऐसे नेता ही न बर्बाद गुलिस्तां कर दें ।।

इतनी तालीम पे बेचें वो पकौड़ा ही क्यूँ ।
कैसे पिजरे में कहीं कैद वो अरमां कर दें ।।

सिर्फ मतलब के लिए आये हमारी दर पर ।
हमसे उम्मीद जिन्हें जान ही कुर्बा कर दें ।।

इश्क़ इतना न बढ़ाओ के जमाने वाले ।
अब मुकर्रर मेरे घर पर ही निगहबॉ कर दें ।।

जन्नते हूर के उस ख़ाब से बचना यारो ।।
ख़्वाहिशें फिर न तुम्हें मौत का सामां कर दें ।।

ग़ज़व-ए-हिन्द पढ़ाते हैं बड़े शौक से जो ।
एक दिन तुझको न वो गैर मुसलमाँ कर दें ।।

अब ज़रूरत है मुहिम आप चलाएं साहब ।।
जिन्हें इंसां नहीं कहते उन्हें इंसां कर दें ।।

ज़ख़्म देकर वो मेरे दर्द की हालत पूछे ।
कुछ सवालात उसे फिर न पशेमाँ कर दें ।

डॉ नवीन मणि त्रिपाठी

*नवीन मणि त्रिपाठी

नवीन मणि त्रिपाठी जी वन / 28 अर्मापुर इस्टेट कानपुर पिन 208009 दूरभाष 9839626686 8858111788 फेस बुक [email protected]