महाभुजंगप्रयात सवैया
8 यगण, 24वर्ण, सरल मापनी — 122/122/122/122/122/122/122/122
प्रभो का दिदारा मिला आज मोहीं, चली नाव मेरी मिली धार योंही।
सभी मीत मेरे सभी साधनों का, सहारा मिला नाथ जी सार सोहीं।।
न था को किनारा न कोई सहारा, खुली नाव माझी मझधार त्योंही।
सभी काम यूँ हीं बनाएँ विहारी, कृपा आप की नाथ साकार होहीं।।
— महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी