मुक्तक
राम लला करिदेव दया भंडार भरौ जग की महरानी,
देशु बढ़ै हर ओर विकास देखाय किसानन केरि किसानी।
राजु चलै कानूनै का कोउ लोफर अब न करै मनमानी,
जन जन के मन हर्ष भरा नववर्ष मनाय रहे सब प्रानी।।
नव सम्वत में आप सभी का नीरज करते वन्दन है,
अपने भारत की माटी का कण कण पावन चन्दन है।
नव सम्वत में आज मिले हो ह्रदय पटल प्रमुदित मेरा,
अनजाने जाने मित्रो का बार बार अभिनन्दन है।।
— आशुकवि नीरज अवस्थी