समय
टिक टिक करती समय की सुइयां
कब देती हैं साथ ।
कितना दौडो भागो पीछे
हाथ आये बस काश ।
कभी दर्द के कांटे छलनी
मन कर जातें हैं ।
मुड़कर देखो अगर जरा
ये हमें चिढ़ाते हैं ।
वक्त करे घाव यूँ गहरे
कब वो भर पाते ।
खुशियों के पल हवा हुए कब
समझ नही पाते ।
कभी बेवफाई के कुछ घण्टे
बिताए नही बीतते ।
कभी राहत के कुछ सेकंड
जाने कब खो जाते ।
कभी फूलों की सेज लगे यह
कभी पीर चिन्गारी ।
रेत से फिसले कभी हाथों से
पल भर में सब खाली ।
पंख लगा कर समय उड़ता है ।
गति न् जाने कोय ।
जिसके सर पर मार समय की
जीवन भर वो रोय ।
वक्त उठाये गठरी अपनी
रोके नही रुकता ।
कितना भी हो ज्ञानवान कोई
समय नही झुकता ।
जीवन की धुरी पर समय
छोड़ता अपने सभी निशान ।
कुछ ही विरले दे जाते है
पर अपनी पहचान ।
— रीना गोयल