क्यो छीना लाल मेरा
क्यो छीना लाल मेरा
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नन्हें नन्हें कदमों ने दी चिता को आग है वो
सिंदूरी कोपलों की आँखों में ढ़रकती सुहाग है वो
तू सुन माओं की चीख अनुराग है वो
जीना लानत है हराम तेरा
तू देख कयामत तक पीछा,
तेरा करेंगी ये मॉओं की चीखें
नन्हे बच्चे की आह!
कब्र में भी तन्हा नही
छोड़ेगा तुझे सवाल मेरा,
क्यूं छीना भारत का लाल मेरा।
पिता की सीने में धधकती द्वेष सुन
तू क्यूं अलग किया मुझसे जिगरा मेरा,
तू कौन भला और किस हक से
पीछे से आघात किया।
तुम बुजदिल हो कायर हो
भेज रहा हु ये दूसरे जिगरा भी
दम है तो सामने आना
वो चीर देगा तेरे सीने को
लाशें बिछ जाएगी,
विवस हो जाएगा पाक जीने जीने को।
सुनों हिंद के गद्दारों
आँख मिचौली बन्द करो तुम
हम खौफ़ न खाते बिल्ली से
एक गोली के बदले सौ गोले दागेंगे
खुली छूट मिल गयी है दिल्ली से।
धधक उठी है जो ज्वाला
ना रुकने से रुकेगी
अपनी मिट्टी के कण कण की
सौगंध हमें है
मातृभुमि रक्षा मे
हमारा हँसते हुए शीश चढ़ेगा
अभी बम की बरसात
तुम्हे समझाने की शुरुवात है
फिर भी आतंकियो को पनाह देते रहे
तो एक दिन तेरा कब्र भी जय हिंद बोलेगा।
राहुल प्रसाद
पलामू झारखण्ड