कविता
सोचा नही था
कि यू भी होगा
अचानक
बहुत देर से
छेड़छाड़ कर रही थी
एक बडे पहाड़ से
एक दिन पहाड़
आ गिरा ऊपर
सारे का सारा
संभल सकी ना
कही किसी तरफ
कुछ नजर ना आए
जिधर देखूँ पहाड़
पहले मेरा सर पहाड़ मे धस गया
अब पहाड़
सर मे घुस रहा है
धीरे धीरे
भारी नही लग रहा
सर को
मगर जैसे जैसे
पहाड़ सर मे समा रहा है
सर और
हल्का होता जा रहा है ….!!
— रितु शर्मा