कविता
सुनो !
शाखाएं सदैव
जाती है ऊपर की ओर
जड़ रहती है बंधी
धरती से
नहीं उखाड़ सकते तुम जड़ो को
ठीक मैं भी हूँ
एक जड़,
किन्तु !
इतना ही है भेद
तुम मुझे उखाड़ सकते हो
मेरी जड़ नहीं,
क्योंकि ?
जड़ ही उपजाती है
कितने ही पेड़
ओजस्वी पेड़
तुम चाहकर भी
नहीं उखाड़ सकते यह सच
कि जड़ जड़ ही होती है
धरा में धंसे अस्तित्व के साथ ।
— रितु शर्मा