दो बाल कविताएँ
कविता 1: दादी की लाठी
दादी की वह लाठी।
बन गई बढ़िया साथी।
कहीं भी जाती दादी।
साथ ले जाती दादी।
भले लाठी में जान नहीं।
बहुत अधिक पहचान नहीं।
दादी का साथ निभाती।
उन्हें नित राह बताती।
लाठी को भी है ज्ञात।
दिन हो या चाहे रात।
एक ही काम करना है।
दादी के साथ रहना है।
कविता 2: ओ पापा !
मेरी बात , सुनिए पापा।
समझिए और, गुनिए पापा।
याद रखें , एक बात।
कभी न रखें , इन्हें साथ।
गुटका खैनी सिगरेट, बीड़ी तंबाकू।
सीना में अड़े, ये धारवाली चाकू।
प्लीज़ डोंट यूज, दिस वाइन।
ओ पापा, आल्वेज बी फाइन।
लुक एट मी, मुस्कुराइए पापा।
कोई बात हो, तो बताइए पापा।
— टीकेश्वर सिन्हा “गब्दीवाला”