लघुकथा – जीने की वजह
सुबह वृद्धाश्रम पहुँच कर सारी कार्यवाही पूरी कर बेटा बहू जाने लगे तो हतप्रभ सा पोता बोला माँ दादाजी को भी साथ ले चलो, सुनते ही बहू ने उसका हाथ कस कर पकड़ा और घसीटते हुए ले जाने लगी पोते की आँखो में आंसू देख कर मन अंदर तक व्यथित हो गया । ” बेटा बिना कुछ कहे विदेश जाने के लिए सामान लेकर टैक्सी की ओर बढ़ गया ।
” जब अपने ही पत्थर दिल हो गए तो गैरों से क्या शिकवा करे ? कमलकांत पोते को जाते हुए देखते रहे पोता उनकी तरफ कातर भाव से मुड़ मुड़ कर देखता रहा। बहू ने जबरदस्ती टेक्सी में बैठा लिया, टैक्सी एयरपोर्ट की ओर रवाना हो गई। कमलकांत से देखा ना गया अंदर कमरे में जाकर बैठ गए।
वृद्धाश्रम में अभी आए हुए कुछ ही घंटे हुए हैं, परन्तु लगता है मुस्कुराए हुए जैसे सदियाँ बीत गई हो । ज़िन्दगी के ये आखिरी लम्हे अपनो के बिना यू बिताने होंगे कभी सपने में भी सोचा न था।
” जाते हुए पोते का आँसुओं से भरा चेहरा ज़हन में रह -रह कर एक टीस पैदा कर रहा था ।
इस ख्याल को झटक कर नजरें कमरे का मुआइना करने लगी ।
कमरे में एक कोने में पुराना घड़ा मुहँ चिढ़ाता सा दिख रहा था । गर्मी में प्यास बुझाने के लिए एक माञ साधन है ।
” सिर के ऊपर एक पंखा खड़ खड़ा रहा था मानों उसकी साँसे उखड़ रही हों।
लग रहा था वो भी अपने दिल की व्यथा सुना रहा हो बिल्कुल मेरी तरह लेकिन कोई सुनने वाला ही न हो ।
खिड़की से बाहर आश्रम के सामने उन्हें पार्क दिखाई दिया तो वे आश्रम से निकल कर पार्क में टहलने लगे कुछ देर टहलने के बाद एक बैंच पर बैठकर आँख बंद कर सुस्ताने लगे। तभी एक बच्चा उनके पास आया और नन्ही कोमल उंगलियों से छू कर कहने लगा क्या आप मेरे दादाजी बनेगे ?
तंद्रा भंग हुई तो सर उठा कर देखा एक प्यारा-सा बच्चा खड़ा उनकी तरफ मुस्कुराते हुए निहार रहा है।
“क्यों नही ” जरूर हम तुम्हारे दादाजी बनेंगे। आईये दादा जी आप मेरे साथ बाल से खेलिए ।
दोनों मिलकर खेलने लगे ।
मन में दृढ़ विश्वास जागा आज से मुझे जीने की वजह मिल गई , एक नई स्फूर्ति का अनुभव हुआ ।
” क्या हुआ जो अपने छोड़कर चले गए इस ख्याल को तुरन्त ही झटक दिया ?
“इस बच्चे ने मेरे अंदर फिर से जीने की ऊर्जा का संचार किया है ।”
बच्चे से हर रोज मिलने का वादा कर एक नई स्फूर्ति के साथ कमलकांत के कदम आश्रम की ओर बढ़ गये ।
— अर्विना गहलोत