कविता माँ मुझे…
माँ मुझे तेरा, ही गान लिखना है।
गुमशुदा स्वाभि- मान लिखना है।
अंगार उगलते है, दृग दृष्टि में-
व्यभिचारी का, अपमान लिखना है।1।
लाल किले पर सदा, तिरंगा लहराना है।
हर एक हाथ को, काम दिलवाना है।
गाथाएं अविरल, बहेंगी इस धरा पर-
हर पस्त इंसान को, ठोकरों से बचाना है।2।
माँ मुझे नारी-नर का, मान रखना है।
तेरे आँचल की कसम, शान रखना है।
भौंकते कुत्ते रहे, चाहें गली में कितने-
हर हाल में रक्षित, परिधान रखना है।3।
मजहब की एकता, मुझकों लिखना है।
हर बून्द दूध का, हिसाब रखना है।
चढ़ चले सूली पर, बेटे तेरे बलिदानी-
गीत गरिमा के लबों पर, गुन-गुनाना है।4।
खोल हाथों को मेरे, अरि रक्त बहाना है।
मुक्त हो बेड़ियों से, कदम मुझे बढ़ाना है।
चंद दिनों का ये जीवन, बयार मतवाली है-
एक तराना एकता का, इन लबों से गाना है।5।
— रतन राठौड़