कविता
पूरी ज़िन्दगी यही सोचता रहा हूँ
की बस दिल का आभाशी प्रतिबिम्ब है ये
ऐसा लगता है की हर दिन हर पल
दिल का एक एक टुकड़ा टूट टूट के गिरता रहा
हा मगर कोई भी कही नहीं था
जो इस टुकड़े को ले के जोड़ सके
बस टुकड़ा टुकड़ा गिरता रहा
और सारी ज़िन्दगी के पल पल में
दिल बच बच के बस थोड़ा थोड़ा बचा रहा
जब तलक कुछ दिल बचा है ये
ज़िन्दगी भी शेष बची है
जैसे जैसे सिगरेट की तरह जल जल के
ये थोड़ा थोड़ा खटक होता रहा
धुआँ धुआँ हवाओ में बिखरती रही है
अब बस समय समय गुजरात गया
बचा हुआ दिल भी सिगरेट की भाँति बचा
ज़िन्दगी की प्रतिबिम्बित बनी
आगे के जलाव को बन
आग भभकने को तैयार है ।
— मीता सिंह