गजल
वक्त ने ,हाय ! ये क्या से क्या कर दिया ?
देके शोहरत, मुझे गुमशुदा कर दिया ।
खेल ऐसा किया ,मैं ठगा रह गया ,
दूर मंजिल, कठिन रास्ता कर दिया ।
कल्पना बाँध दी, लेखनी छीन ली ,
और फिर दर्द का सिलसिला कर दिया ।
अब गजल, गीत ,नज्में नही पास हैं,
वक्त ने मुझको, मुझसे जुदा कर दिया ।
वक्त प्रियतम हुआ ,छू लिया इस तरह
एक पत्थर को भी देवता कर दिया ।
—— डॉ. दिवाकर दत्त त्रिपाठी