तुम स्त्री हो पुरुष नहीं
तुम स्त्री हो पुरुष नही …….
क्यों भूल जाती हो कि
तुम स्त्री हो पुरूष नहीं,
तुम कर लो कितनी भी
तरक्की जीवन में अपने,
स्त्री ही रहोगी हमेशा,
जिसको सुनना होगा पुरुष को ।।
ये समाज बदल गया,
लोगो को सोच बदल गई,
पर पुरूष का अहम ,
नही गया जो है अभी भी ।।
आज भी घर के बाहर ,
तुम कितना बोल लो ,
अंदर भी बोल लो ,
अंत मे करोगी पुरूष की।।
नही होती आज अग्निपरीक्षा,
नही जाती वन में सीता,
कोई राधा नही बनती,
न कोई मीरा बनती ,
लेकिन समाज आज भी ,
पुरूष प्रधान ही है ,
सुनो स्त्री तुमको हमेशा,
सुननी पुरुष की ही है ।।
जब जब तुम आवाज़ उठाओगी,
अपने लिए अधिकार के लिए,
तब तब घर के पुरूष ,
उस आवाज़ को दबाएंगे,
तुमको बोलना नही है ,
सुनना ही है हमेशा,
खुद की भावनाओं को नही,
दूसरों की भावनाओं को मानना है ।।
सुनो तुम स्त्री हो स्त्री ,
जिसका अस्तित्व सिर्फ,
नवरात्र, लक्ष्मी पूजन तक है ,
बाकी सिर्फ साधारण हो तुम ।।
कामयाबी की सीधी चढ़ लो सारी,
अंतिम तभी चढ़ पाओगी जब,
पुरूष साथ दे तुम्हारा ,
क्योंकि तुम स्त्री हो ।।
क्यों भूल जाती हो कि
तुम स्त्री हो पुरूष नहीं।।।।
सारिका औदिच्य