लावणी छंद गीत – चुनाव
समय चुनावों का आया तो ,नेता हरकत में आते ।
भोली भाली जनता से फिर ,वादे सौ- सौ कर जाते ।
सत्तर वर्षों से जनता ने ,दंश यही तो झेला है ।
पाँच साल अंतर पर लगता ,वोटों का ही मेला है ।
उलझा जन को मकड़ जाल में ,ये करते घोटाले हैं ।
अपना उल्लू सीधा करके साफ निकलने वाले हैं ।
वादे इनके हवा हवाई ,बस कुर्सी ही हथियाते ।
भोली भाली जनता से फिर ,वादे सौ- सौ कर जाते ।
भरें जेब सारी नोटों से, लोक हितों की बात नहीं ।
कहते जनता का सेवक हूं ,मेरी कुछ औकात नहीं।
सम्बोधन में मिश्री घोलें ,गली- गली में फिरते हैं ।
हंसो के यह बीच बैठकर ,चाल चील की चलते हैं ।
दिल मे जगह बनाने खातिर ,सुखी रोटी भी खाते ।
भोली भाली जनता से फिर ,वादे सौ- सौ कर जाते ।
सजग नागरिक बनो देश के ,अपना मत उपयोग करो ।
मनुज लोभ में कुछ रुपयों के,भोगी बन मत भोग करो ।
चिंतन ,मनन ,आंकलन करके ,चुनिए भावी नेता को ।
कार्यशील,संकल्पशील हो ,ऐसे किसी प्रणेता को ।
दिशा नई दें जन हित को वो ,सच्चे सेवक कहलाते ।
भोली भाली जनता से फिर ,वादे सौ- सौ कर जाते ।
— रीना गोयल ( हरियाणा)