व्यंग्य : विशालकाय मच्छर का पावरफुल डंक
नेताजी रात को घोड़े बेचकर सो रहे थे। मच्छर ने नेताजी की हृष्ट-पुष्ट काया को देखा तो उससे रहा नहीं गया। उसने नेताजी को काटने के लिए अपने कदम आगे बढ़ाएँ। लक्ष्य की तरफ पैनी निगाहें और मन में पूरा मानस बनाकर मच्छर ने जैसे ही नेताजी को काटा तो नेताजी के कुछ नहीं हुआ लेकिन मच्छर के बहुत कुछ हो गया। वह भगवान को प्यारा हो गया। जब मच्छर का पोस्टमॉर्टम करवाया गया तो पता चला कि एक बड़े जानलेवा मच्छर का जहरीला खून चूसने से मच्छर मनिया की मौत हुई है। मच्छरों की पूरी दुनिया में यह खलबली मच गई कि आखिर ये नया मच्छर कौनसा है जो हमसे भी ज़्यादा पावरफुल है। जैसे ही मुखिया को इसका पता चला वह सीधा उस मच्छर को देखने के लिए गया और उसे काटने की गलती की तो मुखिया भी दुनिया को आखरी अलविदा कह बैठे। मुखिया के मरते ही मच्छरों ने निश्चय किया हम अपना नया मुखिया इस विशालकाय मच्छर को बना देते हैं। यह हम सबसे ज़्यादा ताकतवर व जहरीला भी है। हम मच्छरों की रक्षा के लिए यह मुखिया सही रहेगा।
मच्छरों का पूरा खानदान उस विशालकाय मच्छर के पास पहुँचा और कहने लगा – क्या आप हम मच्छरों के मुखिया बनेंगे ! आपकी ताकत का अंदाजा हमें अपने खानदान के दो मच्छरों के बलिदान के बाद हुआ। यदि आप हमारी गैंग के लीडर बन जाएँ तो हम इन इंसानों की पूरी दुनिया को हिलाकर रख देंगे। विशालकाय मच्छर को गुस्सा आ गया और आक्रोश की मुद्रा में बोल उठा – इंसानों की दुनिया हिलाने के लिए तो मैं एक अकेला ही काफी हूँ। तुम्हारी मुझे क्या ज़रूरत? मेरे पास ऐसे वायदों, भाषणों व प्रलोभन का पावरफुल डंक है कि इससे कोई इंसान बचकर निकल ही नहीं सकता। इंसानों का खून चूसने में मेरा रिकॉर्ड विश्व स्तर का है। मैंने अपना खून ऐसे ही जहरीला नहीं बनाया है इसके लिए रात-दिन मेहनत की है। भ्रष्टाचार की नई-नई तरकीबें तलाश की है, बेमानी के पुल को ध्वस्त किया है, कितने ही सरकारी खजानों में छेद करके अपनी तिजोरी भरी है। तब जाकर मेरा कद आज इतना बड़ा हुआ है। तुम तो सिर्फ़ काटकर जीका, डेंगू, चिकनगुनिया और मलेरिया जैसी बीमारियाँ फैलाते हों, लेकिन मैं रिश्वतखोरी, कालाधन, बेरोजगारी, महंगाई आदि की बीमारियों से आम आदमी को पूरा नंगा करके रख देता हूँ।
इसलिए तुम सारे मच्छर आज से मेरे गुलाम बन जाओ। इसमें ही तुम्हारी भलाई है वरना अपने एक ही डंक से तुम्हारे पूरे खानदान का अस्तित्व इस पृथ्वी लोक से हमेशा के लिए मिटा दूंगा। मच्छरों के पास कोई सहारा नहीं होने के कारण उन्होंने विशालकाय मच्छर की परतंत्रता को स्वीकार करने में अपनी भलाई समझी। विशालकाय मच्छर दिन के उजाले में तो पूरी गुलाम मच्छर फौज रात के अंधेरे में चोरी-चोरी छुपके-छुपके अपना काम करने लगी। दिन के उजाले में खून चूसने वाले मच्छर के लिए अब तक बाजार में कोई गुड नाइट और कछुआ छाप अगरबत्ती नहीं आई है इसलिए उसे अपनी जान का कोई खतरा नहीं है। जनता की नजरों में आज भी यह विशालकाय मच्छर शुभ-चिंतक ही बना हुआ है। लेकिन इस बार के चुनाव में जनता को इस मच्छर की हकीकत जानकर वोट करना होगा। खून चूसने वाले नहीं बल्कि खून बढ़ाने वाले किसी सज्जन को अपना नेता बनाना होगा।