स्वयं का आंकलन
नाम कमाया क्या समाज में हासिल किया मुकाम कौनसा
ये रखता महत्व जीवन में कितनी पाई कहाँ सफलता।
अगर नाम पहचान सही हो सभी हैं पलकों पर बैठाते
खास नहीं यदि आम आप हैं तो आंखों से हैं गिर जाते
गिरकर उठना उठकर गिरना जीवन इसी राह पर चलता।
ये रखता…..
जिसने नज़ाकत वक्त की समझी वह जीवन में आगे निकला
वक्त को जो भी समझ न पाया वही समझ से सबकी फिसला
नब्ज़ पकड़ ली वक्त की जिसने वक्त गोद में उसकी पलता।
ये रखता…
नब्ज़ वक्त की पकड़ो और मुकाम को अपने पहले जानो
सब कुछ छुपा है तुम में ही बस अपने को ही खुद पहचानो
याद रहे जो ढले शाम को सूर्य वही फिर सुबह निकलता।
ये रखता….
—- डॉ माधवी कुलश्रेष्ठ