गजल
किसी ने कामयाबी के हमारे ख्वा सजाये है।
वही भगवान दुनिया मे हमे लेकर के आये है।।
जिसे देखो वही जलता हमारी कामयाबी पर,
मग़र माँ बाप है जो गर्व से सीना फुलाये है।।
जरा सी चूक हो जाये जमाना तंज कसता है,
मग़र माँ बाप ने तब भी हमे ढाढ़स बंधाये है।।
कड़कती ठंड ऐसी जो कँपा देती किसीको भी,
रजाई एक ओढ़ी और हमे दो दो ओढ़ाये है।
फ़टे कुर्ते व धोती में गुजारा कर लिया उनने,
मग़र औलाद को फ़ैशन के कपड़े ही दिलाये है।
स्वयं भूखे रहे है वे खिलाया पेट भर हमको,
मग़र हम है कि उनको रोटियां भी दे न पाये है।
हमे बचपन मे इक पल जो स्वयं से दूर ना करते
बुढ़ापे में उने हम ही वृधाश्रम छोड़ आये है।
नही दौलत बड़ी माँ बाप से बढ़कर जमाने मे,
पलक सेवा करो इनकी यही जन्नत दिलाये है।
— पीरूलाल कुम्भकार