गजल
सहज लिखुँगा , सरल लिखुँगा
भाव हृदय के , तरल लिखुँगा ।।
बड़े सघन हैं , पीड़ सुपथ के
किन्तु पन्नों पर , विरल लिखुँगा ।।
अधरों पे रखी , झूठी तारीफें
इनको नीति का , गरल लिखुँगा ।।
जब मीत , सखा , शत्रु , सब अपने
‘समर’ नहीं वह सरल , लिखुँगा ।।
पुछो पीछे पुँजी , क्या छोड़ी ??
मैं आँखों का , तरल लिखुँगा ।।
तासीर कलम की ना बदलेगी
शहद लिखुँ या , गरल लिखुँगा ।।
— समर नाथ मिश्र
गजल अच्छी है, पर काॅमा और विराम से पहले स्पेस नहीं दिया जाता, केवल बाद में दिया जाता है।