कविता – कलम का सिपाही
मैं सुंदर शब्दों का राही हूँ
मैं कलम का सिपाही हूँ
साहित्य से मेरा गहरा नाता
डायरी का प्यारा भाई हूँ
बड़े-बड़े विद्वान लोग सदा
कलम अपने साथ रखते है
कब कहाँ किस वक़्त काम
आये दिल के पास रखते हैं
बिन थके अनवरत चले
ये लिखती मतवाली है
कलम से गहरा नाता मेरा
इसकी चाल अजब निराली है
आत्मविश्वास मन में जगाए
कविता लिख डाली है
कलम से अटूट रिश्ता मेरा
होठो पर सुर्ख लाली है
कुछ वेदना संवेदना
भावनाओं को लिख देती हूँ
मन के बिखरे भावों को
कागज के पन्नों पे लिख देती हूँ
ये हर वक़्त आती मेरे काम
मेरी कलम सबसे प्यारी है
हर क्षण दिखाती सच्ची राह
मेरी सखा राजदुलारी है
कलम पास न हो अगर
जैसे पुरुष बिना घरवाली है
सदैव संग रहती वो मेरे
मन को देती खुशहाली है।
— सुमन अग्रवाल “सागरिका”
आगरा