तुझमे समाना है
कान्हा की मुरली की धुन ,
उसमें हो गई मगन मैं ,
कान्हा तुम खोए हो मुरली में,
मैं खोई खोई हूँ तुममें,
कान्हा काश मैं होती मुरली,
तो रहती संग तेरे ही हमेशा,
कान्हा तेरी चीज़ों से तेरी,
जलन होती है बहुत मुझे,
तुझको प्यारी ये निर्जीव वस्तु,
मेरे मन के भाव का कोई मोल नही,
काश मोरपंख होती मैं,
शीश पर तेरे चढ़ मैं इठलाती,
काश होती मैं पैजनिया,
तुम चलते तो मैं झूम झूम बजती ,
होती मैं माला तो ,
ह्रदय का सानिध्य रहता मुझे हरदम,
कान्हा कुछ तो ऐसा कर दो,
तुममें में ही खोना है मुझे,
दुनिया से बेखबर हो ,
तेरे संग रहना है ।।
काश होती मैं जमुना का तीर,
तुम आते अठखेलियाँ करने को ,
काश होती मैं कदम्भ का पेड़,
तुम लीला के बहाने मुझमें समाते ।
कुछ तो जादू करो मेरे कान्हा,
तुझमे समा जाना चाहती हूँ,
बहुत हुआ खेल ये दुनिया का ,
अब तो मुझे शरण में ले लो मुझे ।।।
सुन लो मेरे कान्हा ……..
तेरे बिन जिया नही लगता ,
सारिका औदिच्य