कविता

कविता – नारी

लिखती हूं आज फिर नारी के बारे में!
इस सोये संसार की आत्मा को जगाना चाहूंगी!
आज फिर मैं नारी को उसकी पहचान दिलाना चाहूंगी!

रूप तो बहुत नारी के इस धरती पे!
उन ही रूपो में से चंद को गिनाना चाहूंगी!
आज फिर मैं नारी को उसकी पहचान दिलाना चाहूंगी!

बेटियो को बोझ और पराया धन समझने वालो को
उनकी बेटियो की अहमियत दिखाना चाहूंगी!
आज फिर मैं नारी को उसकी पहचान दिलाना चाहूंगी!

खुद की बहन,बेटियो को घर में छुपा कर,
दूसरो की बहन, बेटियो पे बुरी नजर रखने वाले को,
नारी का सम्मान करना सिखाना चाहूंगी!
आज फिर मैं नारी को उसकी पहचान दिलाना चाहूंगी!

बेटी के जनम पर उसकी मां को ताना देने वाले लोगो को,
और बेटी को तिरसकार की मिसाल समझने वालो को,
बेटी का असली अवतार दिखाना चाहूंगी!
आज फिर मैं नारी को उसकी पहचान दिलाना चाहूंगी!

नारी को पुरूष से कम समझने वालो को,
आज मैं, रानी लक्ष्मी बाई, इंदिरा गांधी, मेरी कोम, गीता,
बबीता, जैसी नारियो के उदाहरण बताना चाहूंगी!
आज फिर मैं नारी को उसकी पहचान दिलाना चाहूंगी!

और अंतिम कुछ पंक्ति नारी का सम्मान करने वाले पुरूषो के लिए !

बेटी को बेटे के समान रखने वालो का मैं धन्यवाद करना चाहूंगी!
बेटी को आजादी के पंख देकर उङाने वालो को आज
मैं सर झुकाकर सलाम करना चाहूंगी!

आज फिर मैं नारी को उसकी पहचान दिलाना चाहूंगी!
आज फिर मैं नारी को उसकी पहचान दिलाना चाहूंगी!

दीप्ति शर्मा (दुर्गेश)

पता : RC - 952 प्रताप विहार खोरा कॉलोनी ग़ाज़ियाबाद, उम्र : 22 (04/08/1996) शिक्षा : पोस्ट ग्रेजुएट पेशेवर : एकाउंटेंट , लेखिका फ़ोन नo : 8505894282