कन्या पूजन
नवरात्रि समाप्त हुई और उस दिन कन्या पूजन था । नगर के विख्यात व्यवसायी धरमदास जी ने शहर के गरीब मोहल्ले से १०० से अधिक कन्याओं के कन्यापूजन के लिए एक बड़े पंडाल का प्रबंध किया था । जब हवन किया जाने लगा तो कन्याओं को एक लाइन में खड़े कर दिया गया और एक रस्सी से पंडाल पर पहुँचने का रास्ता रोककर दो व्यक्ति वहां खड़े कर दिए गए ।
कन्याएं बड़ी बेताबी से लाइन में खड़ी इन्तजार कर रही थी की कब हवन ख़त्म हो और कब उन्हें पूड़ी, हलवा के अतिरिक्त भी कुछ मिलेगा ।
हवन ख़त्म हुआ । बच्चियों को पंडाल में बिछी दरी पर जाने के लिए उनको रोकने के लिए लगाई गयी रस्सी खोल दी गयी । लाइन में खड़ी कन्याओं में धक्का मुक्की शुरू हो गयी । छोटी बच्चियों को धक्का देते हुए बड़े बच्चे पंडाल की और दौड़ पड़े । एक चार पांच साल की बच्ची का पैर रोंदते हुए बाकी कन्याएं पंडाल की और दौड़ी । बच्ची का पैर बुरी तरह से जख्मी हो गया । उसके पैर से खून निकलने लगा ।
वह जोर जोर से रोने लगी और वही बैठ गयी ।
एक दरबान आया और बच्ची को डांट कर कहा : चुप करके बैठ जा, वरना वापस चली जा । बच्ची सहम गयी और लंगड़ाते हुए पंडाल में जाकर एक कोने में बैठ गयी । बच्ची के पैर से खून बह रहा था पर पूरी हलवा का लालच उसे बैठने को मजबूर कर रहा था ।
सेठ धरमदास जी आये । सेठ जी बैठी कन्याओं के पैर छूते जा रहे थे और पीछे पीछे आ रहा शख्स हलवा पूरी के पैकेट कन्याओं को देता जा रहा था । जब उस जख्मी बच्ची के पैर पर उनकी नजर पड़ी तो सेठ जी शीघ्र ही दूर से उसके पैर को प्रणाम करते हुए आगे बढ़ गए । पीछे से आ रहे शख्स ने उसे पैकेट पकड़ा दिया ।
वही मैले कुचले कपड़ों में खड़े एक नौकर की नजर जब दर्द से कराहती उस बच्ची पर गयी तो उसने बच्ची को कहा बेटा थोड़ा रुकना, मैं अभी आया ।
वह शीघ्र ही पास की एक दवा दुकान पर गया, रूई में दवा लगाकर पट्टी लेकर आया । बच्ची के पैर में दवा लगाकर उसने पट्टी बाँध दी । बच्ची मुस्कराती हुई चली गयी ।
पाखंड और इन्सानिअत साथ साथ दिखे इस लघु कथा में . इक्सीवीं सदी में भी यह !
लघु कथा अछि लगी रवेंदर भाई .
आदरणीय गुरमेल भाई साहब, बहुत बहुत धन्यवाद. यह मेरी आँखों देखी सच्ची
घटना है ।आपकी दृष्टी ने पाखण्ड और इंसानियत को ठीक पहचान लिया ।