मुक्तक/दोहा

बसन्ती दोहे

नीलगगन उज्जवल, लगे शीतला लगे बयार।
हंस वाहिनी का जनम, वहे बसंती धार। १

उपवन में कलियां, खिली भ्रमर मचाए शोर।
फूल फूल इठला रहे, देश बसंती भोर। २

मन भावनी सुहावनी, है ऋतुराज बसंत।
उपवन में कुसुमावली सुखदायी भगवंत। ३

आया है मधुमास सखि, भ्रमर कली मड़राय।
पान करें कब मधु मधुर, बैठा आस लगाय। ४

वासंती गुलदान में, फूले फूल अनेक।
अली भ्रमित रसपान को, मधुर एक से एक। ५

आया माली ले गया, चुनचुन फूले फूल।
भ्रमर भ्रमण करते रहे, अब काहे को झूल। ६

सरसों अलसी अरु मटर चना तोर बलाघात।
वासंती अनुपम छटा ग्रामदेव हरषात। ७

सरसों फूली बन हरा, आम रहे बौराय।
कुसुमाकर सुंदर लगे, देख भ्रमर हर्षाय। ८

विभावरी बीती सुखद, नीरज खिले तड़ाग।
देखि भ्रमर आतुर भये, मधुर सुनावें राग। ९

उपवन मैं चहुँदिश खिले, सुंदर सुंदर फूल।
बहे पवन सुखदायनी, हरे व्याधि अरु शूल। १०

मन पुलकित अखियाँ सुखद, उपवन की छवि देख।
हरियाली आली लगे, सुधि जन लिखते लेख। ११

उपवन में कलियाँ खिलीं, भ्रमर लेहिं मकरंद।
मन भर पियें मधुर मधु गूंजारहि स्वच्छंद। १२

कोयल कूके बाग में, चिड़िया चहकी डाल।
झूला सखियाँ झूलतीं विरहा मन बेहाल। १३

धरती दुल्हन सी सजी, रंग बिरंगे फूल।
लागी हट्ट बसंत की, कालिंदी के कूल। १४

प्रेम सिंह राजावत “प्रेम”

प्रेम सिंह "प्रेम"

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