कविता- श्रमिक
देखती हूँ , अक्सर कुछ गरीबो को बहुत मेहनत करते हुए |
फिर भी उनकी मेहनत का किसी पर कोई उपकार नहीं होता |
एक श्रमिक ही है जिसे उसकी मेहनत का सच्चा अंजाम नहीं मिलता |
बनाकर बड़ी बड़ी इमारतें लोगो की, खुद झोपड़ियों में सोता है |
चलाकर रिक्शा न जाने कितनो लोगो को उनके महलो तक छोड़ता है।
फिर भी उसका खुद कोई ख़ास ठिकाना नहीं होता |
एक श्रमिक ही है जिसे उसकी मेहनत का सच्चा अंजाम नहीं मिलता |
उठाकर बोझा जो सबका वजन कम करता है |
थका हुआ चेहरा और गम्छे से पसीन टपकता है |
फिर भी लोगो को उसके कंधो का भार नहीं दिखता|
एक श्रमिक ही है जिसे उसकी मेहनत का सच्चा अंजाम नहीं मिलता |
अपने शोक क लिए लोगो को महंगे जगह पर खाना खाना अच्छा लगता है |
लकिन एक गरीब को १० रूपए ज्यादा देना भी न जाने क्यों इतना अखरता है |
बर्दास्त करता है जो गरीबी में ये सारी चीजे ।
फिर भी उसके मुँह पे बददुआओ का भाव नहीं होता |
एक श्रमिक ही है जिसे उसकी मेहनत का सच्चा अंजाम नहीं मिलता |
समय से काम पर न पहुँचने पर पारिश्रमिक काट लिया जाता है जिसका |
बहुत लोगो द्वारा मेहनत का पैसा मार लिया जाता है जिसका |
पूरा दिन काम करके भी जिसे चंद पल का आराम नहीं मिलता |
एक श्रमिक ही है जिसे उसकी मेहनत का सच्चा अंजाम नहीं मिलता |
सर झुककर सबको सलाम करने में,
सबके इशारो पे नाच कर भी ,जो कभी परेशान नहीं होता |
फिर भी बदले में उसे ,उन्हीं लोगों से शब्दो में सम्मान नहीं मिलता |
एक श्रमिक ही है जिसे उसकी मेहनत का सच्चा अंजाम नहीं मिलता |
श्रमिको के हक क लये बाते तो सब करते है |
पर किसी के आवाज उठाने पर कोई साथ नहीं देता |
यकीनन इसिलये उनका कभी न्याय नहीं होता |
एक श्रमिक ही है जिसे उसकी मेहनत का सच्चा अंजाम नहीं मिलता|
बच्चो को शिक्षा का अधिकार ये सबका मानना है |
लकिन श्रमिक की औलाद श्रमिक ही बनेगी ये सोचना भी किसी को बेकार नहीं लगता |
शायद इसीलिये उनकी औलाद के जीवन में कोई चमत्कार नहीं होता |
एक श्रमिक ही है जिसे उसकी मेहनत का सच्चा अंजाम नहीं मिलता |
परिचय
दीप्ति शर्मा (दुर्गेश)
पता : RC – 952 प्रताप विहार खोरा कॉलोनी ग़ाज़ियाबाद,
उम्र : 22 (04/08/1996)
शिक्षा : पोस्ट ग्रेजुएट
पेशेवर : एकाउंटेंट , लेखिका
फोन नं : 8505894282