उम्र के एक पड़ाव पर
उम्र के एक पड़ाव पर
हो जाते हैं फीके बेरंग
एहसास
यथार्थ के हाथों होते हैं
कत्ल भावों के।
एक मृग मरीचिका
के पीछे होती है
एक अंधी दौड़
बस एक इच्छा
होती जाती है
बलवती
पूरी हो जिम्मेदारियां
मिले मुक्ति।
फिर आता है
एक नया पड़ाव
चाहते हैं जीवित
करना
मरे हुए एहसास
कुचले हुए भाव
पर क्या ये सम्भव है?
अपने ही हृदय के
कब्रिस्तान में दफ्न
अपने ही ख्वाहिशों
और एहसासों का
जिंदा होना???
……..कविता सिंह