सामाजिक

माँ

माँ भावनाओ और अहसासों से भरा एक रिश्ता हैं जिसे कभी समझाने की जरूरत नही पड़ती. इस रिश्ते को नाम भले ही दुनिया में मिलता हो लेकिन इसकी शुरुआत माँ के गर्भ से हो जाती हैं. बचपन लापरवाह और नासमझ होता हैं.कच्ची उम्र में बच्चो को पहली सीख माँ से ही मिलती हैं. इसलिए बच्चो की पहली पाठशाला माँ को कहा गया हैं. हर माँ को अपने बच्चे की फ़िक्र रहती हैं. चाहे वह बच्चा हो या जवानी की दहलीज़ पर कदम रखने वाला किशोर हो. तब भी न माँ की ममता कम होती हैं और न ही उसकी खूबसूरती. अपने बच्चो के उठाये गये कदमो पर माँ की हर पल नजर रहती हैं. इसलिए उस दिन भी माँ समझ गयी की कुछ गलत हुआ हैं. स्वाति की उदास नजरो से भाप लिया की कुछ अप्रिय घटित हुआ हैं. बरतन साफ करते उसकी आखो से आंसू बह रहे थे. जिन्हें वह छुपाने की नाकाम कोशिश कर रही थी. आख़िरकार माँ से रहा ही नही गया पुछ ही बैठी-क्या हुआ स्वाति ? मैं तुम्हारी मालकिन ही नही माँ जैसी हु. मुझ पर भरोसा कर और सच हैं वो बता. स्वाति अव जो बता रही थी. वो एक माँ के लिए सदमे से कम नही था. भाई ने स्वाति के साथ जबरदस्ती करने की कोशिश की हैं.

माँ ने गुस्से में भाई को बुलाया और स्वाति की उसे जोर से दो थप्पड़ मारने को कहा. पहले पहले उसने मना किया. लेकिन माँ के जोर देने पर सकुचाते हुए उसने तेजी से दो थप्पड़ भाई गाल पर मारकर अपने साथ हुई अभद्रता का बदला ले लिया.उसका गुस्सा शांत हो चूका था. उसके चेहरे पर सुकून था. भाई गुस्से में पैर पटकता हुआ कमरे में चला गया. तब माँ ने भाई को समझाया कि आज तुम गलत थे स्त्री की मर्यादा और उसका मान रखना प्रत्येक पुरुष का कर्त्यव हैं. यदि स्वाति के स्थान पर ऐसी हरकत मेरी बेटी साक्षी के साथ हुई होती तो….जब अपनों का दर्द होता हैं, दूसरी स्त्री के प्रति वही भावना रखे.

भाई समझ गया. इसके साथ ममुझे भी समझ आ गया की माँ माँ होती हैं गलत खुद की बेटी के साथ हो या नोकरानी की बेटी के साथ. तब एक माँ जाग जाती हैं. गलत को गलत कहने की हिम्मत एक माँ में ही होती हैं. बचपन की इस नसीहत की अहमियत मुझे जीवन के हर कदम  पर काम आई. यदि उस वक्त स्वाति की बात को नजरंदाज क्र जाती तो भाई गलत दिशा की और बढ जाता. आज मैं भी एक बेटे की माँ हु उसे समझाने के लिए ही मुझे भी माँ के दिखाए रास्तो पर चलना होगा

शोभा रानी गोयल

शोभा गोयल

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