गीत/नवगीत

नयनों यूँ मत तोल

जिस दिन टकराये अनजाने नयनो के कुछ बोल
हूक उठी भीतर अनजानी पीर मिली बिन मोल

लाज सिहर सिमटी अनबुझ सी प्यास जगी मन
धड़की निजता निज पर तकि अद्भुत आकर्षण

अधर फड़कते पाँव थिरकते हृद जाग्रत सौ प्रश्न
मिले न उत्तर यह प्रसंग क्या करते यत्न प्रयत्न

दिवस दीर्घ निशि ज्यो लघु लगती मन ढूंढे एकांत
गूढ़ रहस ये प्रीत पथिक पल में हो ऊर्जित क्लांत

मिलन विरह पंथ एक चलते हृदय विषम संग्राम
भाव अभाव संग लेकर उड़े मन पंछी अविराम

बोल अबोले कह जाते कितना कानो में रस घोल
हाथ थाम चल जिधर धीर हो नयनो यूँ मत तोल ।।
प्रियंवदा©

प्रियंवदा अवस्थी

इलाहाबाद विश्वविद्यालय से साहित्य विषय में स्नातक, सामान्य गृहणी, निवास किदवई नगर कानपुर उत्तर प्रदेश ,पठन तथा लेखन में युवाकाल से ही रूचि , कई समाचार पत्र तथा पत्रिकाओं में प्रकाशित , श्रृंगार रस रुचिकर विधा ,तुकांत अतुकांत काव्य, गीत ग़ज़ल लेख कहानी लिखना शौक है। जीवन दर्शन तथा प्रकृति प्रिय विषय । स्वयं का काव्य संग्रह रत्नाकर प्रकाशन बेदौली इलाहाबाद से 2014 में प्रकाशित ।