नयनों यूँ मत तोल
जिस दिन टकराये अनजाने नयनो के कुछ बोल
हूक उठी भीतर अनजानी पीर मिली बिन मोल
लाज सिहर सिमटी अनबुझ सी प्यास जगी मन
धड़की निजता निज पर तकि अद्भुत आकर्षण
अधर फड़कते पाँव थिरकते हृद जाग्रत सौ प्रश्न
मिले न उत्तर यह प्रसंग क्या करते यत्न प्रयत्न
दिवस दीर्घ निशि ज्यो लघु लगती मन ढूंढे एकांत
गूढ़ रहस ये प्रीत पथिक पल में हो ऊर्जित क्लांत
मिलन विरह पंथ एक चलते हृदय विषम संग्राम
भाव अभाव संग लेकर उड़े मन पंछी अविराम
बोल अबोले कह जाते कितना कानो में रस घोल
हाथ थाम चल जिधर धीर हो नयनो यूँ मत तोल ।।
प्रियंवदा©