लघुकथा

एक आत्म लघु कथा – भिखारन

एक दिन मैं और मेरे कुछ मित्र एक मंदिर क दर्शन  करने गए| हम मंदिर में परवेश कर रहे, तो दो भिखरन मंदिर क दरवाजे पर बैठी हुई थी | जब हम वापस मंदिर से दर्शन करके लौट रहे थे |  तभी उन दोनों भिखरन में से एक ने मेरा बेग पकड़ लिया और बोली के बेटा कुछ खाने को दे दो सुबह से भूखी हूँ| तो मैने अपने बेग से टिफ्फन निकाल कर उस औरत को दे दिया | और वो औरत मेरे सर पर हाथ फेरकर मुझे आशीर्वाद देने लगी के बेटा खूब तरक्की करो , खुश रहो खूब नाम कमाओ और भी बहुत कुछ | फिर दूसरी भिखरन भी मुझसे खाना माँगने लगी अब क्योकि मेरे पास खाना नहीं था इस लिए  मैंने अपने बेग से १० रुपये निकाल कर उसे दे दिए| पहली भिखरन की तरह ये भी मुझे आशीर्वाद देने लगी | उस दिन मैंने जाना के आज पैसो के बाजार में दुआये बहुत सस्ती बिकती है |

सीख़ – इसलिए बेशक किसी पैसेवाले इंसान को १०० रुपये कम दे दो ,लेकिन किसी भिखारी को दो रोटी जरूर खिलाओ , और क्योकि जो असर दुआए कमाने में है वो पैसो कमाने में नही है |

दीप्ति शर्मा (दुर्गेश)

दीप्ति शर्मा (दुर्गेश)

पता : RC - 952 प्रताप विहार खोरा कॉलोनी ग़ाज़ियाबाद, उम्र : 22 (04/08/1996) शिक्षा : पोस्ट ग्रेजुएट पेशेवर : एकाउंटेंट , लेखिका फ़ोन नo : 8505894282