कविता

कविता – गरीबी

गरीबी की बस इतनी सी कहानी है |

हाथ में दबे दो मुट्ठी चून की ,

मंदी सी  आंच पे रोटी पकानी है |

कशमकश में है उनकी जिंदगी भी ये सोचकर के ,

किस तरह इन्हे आज और भूखे पेट से थोड़ी सी मोहलत दिलानी है |

गरीबी की बस इतनी सी कहानी है |

नंगा बदन , चोट से छीले हुए पैर ,

आखो में चमकता चीजो का आभाव ,

किसी के हाथ में कटोरा  ,तो  किसी के कांधे पे ,

लटकती  कचरे की जिम्मेदारी है |

गरीबी की बस इतनी सी कहानी है |

अनजान है ये दुनिया के ऐसो – आराम से

और वंचित है अपने अधिकारों से ,

बस इसिलए इनके अधिकारों और खुशियों,

की एक गंगा इनके जीवन में भी बहानी  है |

गरीबी की बस इतनी सी कहानी है |

कोशिश  है अब के देकर इनके हाथ में  किताब ,

कामयाबी की लौ इनके जीवन में जलानी है |

कर के इनके जीवन में उजाला दुनिया को इनकी रौशनी दिखानी है |

गरीबी की बस इतनी सी कहानी है |

और अंतिम पंक्ति युवाओ  के लये सुधार की ओर ,

ना घूमे कोई बच्चा सिग्नल प भूखा ,

न फैलाये किसी के आगे हाथ ,

और

टेंगा हो कंधो किताबो का भार ,

मिले इन्हे भी समानता का अधिकार ,

इस मुहीन क़ी जिम्मेदारी भारत देश के हर युवा को उठानी है |

गरीबी की बस इतनी सी कहानी है |

गरीबी की बस इतनी सी कहानी है |

— दीप्ति शर्मा (दुर्गेश)

 

दीप्ति शर्मा (दुर्गेश)

पता : RC - 952 प्रताप विहार खोरा कॉलोनी ग़ाज़ियाबाद, उम्र : 22 (04/08/1996) शिक्षा : पोस्ट ग्रेजुएट पेशेवर : एकाउंटेंट , लेखिका फ़ोन नo : 8505894282