भगवत गीता हूँ
मुंह से एक शब्द ना निकला
भारत माता के बंटने पर,
कब किसने आंसू छलकाया
मेरे जिस्मो केे कटने पर।
मै द्वापर युग की देवी हूँ
जिसको कृष्णा ने पाला है,
अब मै कलियुग वो गइया।
जिसका हर घर से निकाला है
मैं आसमान की देवी हूँ,
जिसको देवों ने पूजा है
मेरे शरीर मे वो अमृत।
जो और कहीं ना दूजा है
मै ऋषि मुनियो की माता हूँ,
देवताओं की भी प्यारी हूँ
सीता केे श्राप के कारण ही।
कलियुग मे अाज लाचारी हूँ
मेरे ही दूध केे कारण ही,
हँसता सबका परिवार जो है
मुझसे ही मुस्काती धरती।
जगता सबका त्यौहार जो है
मुझसे ही गौरा हैं गणेश,
मुझसे ही शालिक राम भी हैं
मुझमे ही सारे देव बसे।
मुझमे ही चारो धाम भी हैं
मैं क्रोधित जैसे माँ चंडी,
मै कोमल जैसे सीता हूँ
मै पावन जैसे माँ गंगा,
मानस हूँ भगवत गीता हूँ।
— कवि प्रशान्त मिश्रा
करपिया प्रयागराज उप्र.
7619041493