ऐ दिसंबर …
आये थे तुम जब लेकर
हौसले, अरमान ,आशायें
खुशियों के दबे ढके से
सुनहले अहसास ।
कुछ ख्बाव ,कुछ सपने
कुछ कदमों के निशान ।
सर्द सी सुबहों के साथ
गुनगुना ,सुखद अहसास
फिर शनैःशनैः हुआ
बदलाव फिज़ाओं में
हवाओं में ,नज़ारों में
सोच में नज़रिये में ।
तुम भी तो बदल गये
कितने रुप दिखा गये ।
कभी तिलमिलाहट
कभी जलन ,कभी दर्द
दे गये कुछ और जख्म
पहले वाले अभी भरे न थे
इज़ाफा कुछ और जख्मों का ।
किसी हमदर्द से मिलवाया
किसी अपने से साथ छुड़ाया ।
किसी के मन प्रीत जगाई
कोई बन गया हरजाई।
अब जा रहे हो तुम फिर
लेकर कुछ यादें ,आँसू
चुभते काँच से जख्म
किरकिराते से दिल में ।
टूटी मुस्कान ,छूटा साथ
कुछ सौगात जो रहेगी
सदा ही साथ ।
जा तो रहे हो तुम
पर याद बहुत आओगे।
ऐ दिसंबर ……
सर्द हवाओं के साथ
सर्द हुये व्यवहार भी
रुठे कुछ अपने
छूटे कुछ रिश्ते ..
सच ..
बहुत याद आओगे ।
ऐ दिसंबर ..तुम बहुत याद आओगे
तुम्हीं तो लाये थे नयीं कोंपलें
फिर दे के जा रहे हो
आने वाले मेहमान के लिये ।
न जाने उसके आगोश में
मेरे लिये गर्माहट होगी भी या नहीं
न जाने उसकी बंद मुट्ठी में
मेरे लिये खुशी ,सफलता
होगी भी या नहीं ।
…जाते जाते ये कड़वी यादें भी ले जाना
ऐ दिसंबर ,कुछ सपने साथ लिये
तुम साथ मेरे ,पास मेरे फिर आना ।
— मनोरमा जैन पाखी