तुम कौन ?
हरीतिमा की मखमली चादर ,
श्वेत शफ़्फ़ाक बदन पर
काले मोतियों से सजी
मेरे ख्बावों ,सपनों को समेटे …
तू कौन ??
फडफडाते पन्नों पर ,सजे हर्फ दर हर्फ ।
ललचाते ,मुझे बुलाते ,खुश्बू में भीगे खत ।
लिखे कौन..??
तिलिस्म था कोई बहका बहका ,
कलरव बीच ज्यों चहका चहका
खींचता मुझे आकर्षित कर अपनी ओर ।
मगर कौन??
सहेली सी बन आई ,वनदेवी सी पहुँनाई
बेगानों के बीच बस तू ,अपनी बन चली आई ।
है तू कौन?
मेरे अधरों की तबस्सुम पर ,खिल खिल जाती
उनींदी आँखों में सपन कोई दे जाती ।
आत्मिक ,हमसफर सी थाम हाथ चल देती।
हो कौन?
हर सवाल का जबाब देती ,
मेरा दर्द चुपके से पी लेती ।
सब़्ज बाग के खंडहरों में
मैं भी पल दो पल जी लेती।
लगती अंजानी अपनी पर ,
दुआ सी कौन?
जब भी तन्हा होती ,वीराने में खोती
अल्हड सखी सी तू बाँहों में भरती।
देकर दिलासा ,नया अध्याय लिखवाती।
सखे ,तेरा परिचय क्या ?
क्यों हो तुम मौन ?
— पाखी जैन