उचित आहार व्यवहार रखें टाइप 2 मधुमेह के खतरे से बचें
आहार जीवन की मूलभूत आवश्यकता है। उचित आहार उचित भोजन पर निर्भर करता है, जिसके अन्तर्गत आने वाले मुख्य अवयवों में कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन एवं वसा शामिल हैं। इसके अलावा कम मात्रा में विटामिन एवं खनिज की भी आवश्यकता होती है। भोजन के द्वारा लिए गए इन जैव-रसायनों का उपयोग उनके मूल रूप में शरीर नहीं कर सकता है। अत: पाचन तंत्र इसे छोटे अणुओं में विभाजित कर साधारण पदार्थों में परिवर्तित कर देता है, जो शरीर अपनी आवश्यकतानुसार प्रयोग करता रहता है। जीवन को सुचारु रुप से चलाने के लिए नियमित और स्वास्थपरक आहार बहुत जरुरी है। अन्यथा कई तरह के रोग शरीर को जकड़ने लगते हैं। इसी तरह के रोगों में मधुमेह रोग से पीड़ित लोगों की संख्या दिन प्रतिदिन बढ़ती जा रही है।
जब मनुष्य के शरीर के अग्नाशय में इंसुलिन का पहुंचना कम हो जाता है तो रक्त में ग्लूकोज का स्तर बढ़ जाता है। इस स्थिति को मधुमेह कहा जाता है। इंसुलिन एक हार्मोन है जोकि पाचक ग्रंथि द्वारा बनता है। इसके कार्य शरीर के अंदर भोजन को ऊर्जा में परिवर्तित करना और शरीर में शुगर की मात्रा को नियंत्रित करना है। मधुमेह हो जाने पर शरीर को भोजन से ऊर्जा बनाने में कठिनाई होती है। इस स्थिति में ग्लूकोज का बढ़ा हुआ स्तर शरीर के विभिन्न अंगों को हानि पहुंचाना आरंभ कर देता है।
मधुमेह वंशानुगत और अनियमित जीवनशैली के कारण होता है। वंशानुगत को टाइप-1 और अनियमित जीवनशैली की वजह से होने वाले मधुमेह को टाइप-2 श्रेणी में रखा जाता है। वंशानुगत के लिए आप कुछ नहीं कर सकते, क्योंकि वह आनुवांशिकतौर पर स्थानांतरित होता है। लेकिन टाइप 2 मधुमेह के लिए मनुष्य स्वयं जिम्मेदार है। टाइप 1 में इंसुलिन का बनना कम हो जाता है या फिर इंसुलिन बनना बंद हो जाता है। जबकि टाइप 2 से पीड़ित लोगों के रक्त में शर्करा की मात्रा इतनी ज्यादा बढ़ जाती है कि उसको नियंत्रण करना बहुत मुश्किल हो जाता है। ग्लाइसेमिक इंडेक्स या जीआई रक्त शर्करा के स्तर पर कार्बोहाइड्रेट के प्रभाव को दर्शाने वाली एक माप है। आजकल कामों के तनाव के चलते शारीरिक श्रम कम हो रहा हैं, नींद पूरी नहीं ली जा रही है, अनियमित खानपान इस तरह के ये सभी कारक लोगों में मधुमेह होने की संभावना को बढ़ावा दे रहे हैं।
हाल ही में क्लीनिकल इपिडेमियोलॉजी एण्ड ग्लोबल हैल्थ जर्नल में बिहार स्थित राष्ट्रीय औषधीय शिक्षा एवं अनुसंधान संस्थान और राजेंद्र स्मारक चिकित्सा विज्ञान अनुसंधान संस्थान, पटना तथा जामिया हमदर्द नई दिल्ली के शोधकर्ताओं का एक शोध प्रकाशित हुआ है। इसमें वैज्ञानिकों ने टाइप 2 डायबिटीज मेलिटस रोगियों की आहार लेने की आदतों को उनके शरीर में वसा, ग्लाइसेमिक स्थिति और पोषक जैवसंकेतकों के साथ जोड़कर अध्ययन किए। यह देखा गया है कि नियमित और स्वास्थपरक आहार न लेने की आदतों से लोगों में टाइप 2 मधुमेह होने का खतरा बढ़ सकता है। वैज्ञानिकों ने मधुमेह रोगियों की आहार गुणवत्ता और पोषण संबंधी प्रक्रियाओं के बीच संबंधों पर गहन शोध किए हैं।
यह पाया गया है कि भोजन ग्रहण करने के तरीके और आहार की पोषण गुणवत्ता लोगों में मोटापा, शारीरिक निष्क्रियता, नीरस जीवन शैली और पूर्व-मधुमेह अवस्था जैसे अन्य जोखिम कारकों के साथ टाइप 2 मधुमेह के होने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। अध्ययन में टाइप 2 मधुमेह मेलिटस से ग्रस्त 40 से 70 साल के बीच के लगभग 200 रोगियों की आहार संबंधी प्रवृत्तियों की जांच की गई। आहार प्रवृत्तियों के कारण शरीर में पोषक तत्व पूरकता की स्थिति का पता लगाने के लिए रक्त में वसा की मात्रा, ग्लाइसेमिक इंडेक्स, और कुछ महत्वपूर्ण पोषण संबंधी बायोमार्करों जैसे हीमोग्लोबिन, कोलेस्ट्रॉल, जिंक, विटामिन डी, कैल्शियम, एल्ब्यूमिन का मूल्यांकन किया गया।
शोध में पाया गया कि केवल 25 प्रतिशत रोगी ही ऐसे मिले जो सुबह उठने के दो घण्टे के भीतर नियमित ब्रेकफास्ट लेते थे। लगभग 75 प्रतिशत रोगियों में उनके बढ़ते वजन को लेकर कोई तनाव नहीं दिखा। केवल 20 प्रतिशत रोगी ही अपने नियमित आहार के बीच बीच में अनावश्यक भोजन खाने से बचते पाए गए। मुख्यरुप से महिलाओं को लेकर एक बात सामने आई कि सुबह से घरेलू कामों में जुटे रहने से अक्सर वे ब्रेकफास्ट नहीं लेती हैं। टाइप 2 मधुमेह मेलिटस ग्रस्त लोगों का आहार को लेकर लापरवाहपूर्ण रवैया जीवन के लिए एक खतरनाक संकेत हो सकता है क्योंकि इसका सीधा संबंध बड़े पैमाने पर रुग्णता और मृत्यु दर से होता है।
रोगियों द्वारा यथोचित मात्रा में फलों और मछलियों का सेवन न करना, समय पर या नियमित भोजन करने की आदत न होना, उबले चावल, गेहूं के पराठे, नूडल्स, आलू, हरी मटर जैसी उच्च से मध्यम ग्लाइसेमिक इंडेक्स वाली चीजों और पूर्ण वसायुक्त दूध का अधिक सेवन करने की अस्वास्थ्यजनक आदतें भी देखने को मिली। इस तरह की आदतों के कारण रोगियों में जिंक, विटामिन डी और एल्ब्यूमिन की कमी पाई गई, जबकि उनके सीरम कैल्शियम का स्तर बढ़ा हुआ मिला।
भारत में विविध तरह के व्यंजन खाए जाते हैं, इसलिए आहार के तरीकों का मूल्यांकन बहुत जटिल प्रक्रिया है। टाइप 2 मधुमेह के रोगियों द्वारा जो भोजन खाया जाता है, उसका संबंध उनके कार्डियो-चयापचय जोखिम वाले कारकों और पोषक जैवसंकेतकों की स्थिति से होता है। कार्डियोमेटाबोलिक जोखिम एक ऐसी स्थिति है जिसमें एथेरोस्क्लेरोटिक कार्डियोवास्कुलर रोग और मधुमेह मेलेटस के विकास की संभावनाएं इंसुलिन प्रतिरोध के परिणामस्वरूप काफी बढ़ जाती हैं।
टाइप 2 मधुमेह से पीड़ित व्यक्ति में शरीर इंसुलिन का सही उपयोग नहीं कर पाता है और इस स्थिति को इंसुलिन प्रतिरोध कहा जाता है। टाइप 2 मधुमेह ग्रस्त व्यक्ति में प्यास और भूख में वृद्धि, बार-बार मूत्र त्याग की इच्छा, वजन कम होते जाना, थकान, धुंधली दृष्टि, संक्रमण और घावों का धीमी गति से भरना तथा कुछ क्षेत्रों में त्वचा का काला पड़ना जैसे प्रमुख लक्षण होते हैं।
शोध से प्राप्त परिणाम पोषक तत्वों की कमी वाले टाइप 2 मधुमेह रोगियों के लिए पोषण चिकित्सा योजना बनाने में सहायता कर सकते हैं, जिससे स्वास्थ्य परिणामों में सुधार हो सकता है। वर्तमान में विभिन्न मूल्यांकन उपकरणों के माध्यम से लोगों की आहार संबंधी आदतों की व्याख्या करने के लिए किए जा रहे अनुसंधानों से चिकित्सकों को मधुमेह रोगियों को उनके आहार संशोधनों के लिए मार्गदर्शन करने में काफी सहायता मिल रही है।
अतः सबसे आसान तरीका है कि संयम के साथ उचित आहार समय पर लें और टाइप 2 मधुमेह से बचें।