कविता

कही खो से गए हैं..

कहीं खो से गए हैं
वो हँसी वो लम्हे
वो दोस्ती वो प्यार
वो अपनापन वो तकरार
कहाँ कहाँ नहीं ढूंढी
लाख ढूंढने पर भी नहीं मिलें
थक हार बैठ गयी एक कोने में
तभी याद आया
मै कितनी पागल हूँ
वो सब ढूंढ रही जो अब हैं ही नहीं
वो हँसी वो लम्हे
वो दोस्ती वो प्यार….
सच मे कहा है अब
अब है तो सिर्फ दिखावा
दोस्त भी बहुत है लेकिन
मतलब के लिए
अपने भी बहुत है लेकिन
काम निकालने के लिए
प्यार भी बहुत है लेकिन
धोखा के लिए
और हाँ हँसी भी तो हैं
सिर्फ दिखावे के लिए
मै थक सी गयी हूँ
ये झूठे दोस्त प्यार और हँसी से
तुम कहते हो न कि
मै खड़ूस हूँ
तो खड़ूस ही सही
कम से कम दिखावे का तो
ये सब नहीं करती।
निवेदिता चतुर्वेदी ‘निव्या’

निवेदिता चतुर्वेदी

बी.एसी. शौक ---- लेखन पता --चेनारी ,सासाराम ,रोहतास ,बिहार , ८२११०४