मुक्तक/दोहा

लावणी छंद – मौसम

ज्यों- ज्यों  धूप चढ़ी अम्बर पर ,ढली रात भी बादल में ।
इक झटके में हवा जा छुपी, जाने किसके आँचल में ।
धीरे-धीरे गर्म हुआ फिर , वसुधा का कोना-कोना-
झुलसा है मन इस मौसम में , बहे  पसीना काजल में ।
बरखा का मौसम है आया ,  धरा हरित श्रृंगार करे ।
मेघ नाचते ताल मिलाकर , बिजुरी भी झंकार करे ।
लहरों की भी तो मनमानी , अजब है होती इन्ही दिनों –
रह- रह कर उठती गिरती यूँ ,ज्यों सजना मनुहार करे ।।
— रीना गोयल ( हरियाणा)

रीना गोयल

माता पिता -- श्रीओम प्रकाश बंसल ,श्रीमति सरोज बंसल पति -- श्री प्रदीप गोयल .... सफल व्यवसायी जन्म स्थान - सहारनपुर .....यू.पी. शिक्षा- बी .ऐ. आई .टी .आई. कटिंग &टेलरिंग निवास स्थान यमुनानगर (हरियाणा) रुचि-- विविध पुस्तकें पढने में रुचि,संगीत सुनना,गुनगुनाना, गज़ल पढना एंव लिखना पति व परिवार से सन्तुष्ट सरल ह्रदय ...आत्म निर्भर