लावणी छंद – मौसम
ज्यों- ज्यों धूप चढ़ी अम्बर पर ,ढली रात भी बादल में ।
इक झटके में हवा जा छुपी, जाने किसके आँचल में ।
धीरे-धीरे गर्म हुआ फिर , वसुधा का कोना-कोना-
झुलसा है मन इस मौसम में , बहे पसीना काजल में ।
बरखा का मौसम है आया , धरा हरित श्रृंगार करे ।
मेघ नाचते ताल मिलाकर , बिजुरी भी झंकार करे ।
लहरों की भी तो मनमानी , अजब है होती इन्ही दिनों –
रह- रह कर उठती गिरती यूँ ,ज्यों सजना मनुहार करे ।।
— रीना गोयल ( हरियाणा)