सब चाहते हैं साथ यौवन का।
किसने साथ निभाया बचपन का।
छूट गईं सखियां छूट गये बाग बगीचे,
तैरते हैं ख़्वाब कजरारी पलकों के नीचे,
इंतज़ार है मनचाहे साजन का।
किसने साथ निभाया बचपन का।
चलते हैं जमीं पे आसमां का गुमां होता है,
यूं ही एहसासे प्यार जवां होता है,
बदल गया है अंदाज जीवन का।
किसने साथ निभाया बचपन का।
आंखों में तूफान है सैलाब आने को है,
जैसे जिंदगी में इंकलाब आने को है
बदली है चाल होश नहीं है तन का।
किसने साथ निभाया बचपन का।
— ओमप्रकाश बिन्जवे ” राजसागर ”