यादों की बारात
तुमने हल्के से मुस्कुरा कर
मेरे दिल में दस्तक दी,
रात कब तारों को
अलबिदा कर दी,
सहर में बदल गई
और पता ही नहीं चला
मैं यादों की बारात में खो गया।
वक्त की दहलीज पर
हम रात को जाते हुए
देखते रहे।
काश
ये पल रूक जाते
हम सोचते रहे
पल पल गुजारते रहे,
हम स्मृतियों की बारात में चले गए
वक्त के सामने
किसी की कब चली
रात देखते देखते
चुपचाप चली गई
हम यादों की बारात में खो गए।
अलसायी, उनींदी आंखों को छोड़कर
कुछ नये ख्वाबों को जोड़कर
फिर कुछ क्षण के इंतजार में
कि फिर शाम की बेला हो
तुम्हारी याद हो।
कुछ अहसासों के साथ
गुज़रे पल साथ हों,
और प्यार की हल्की सी
मुस्कान के साथ
फिर यादों की बारात हो।
— कालिका प्रसाद सेमवाल