नारी
जिसके बिन जीवन मे तम है ,वह प्रकाश ही नारी है।
घर -आँगन जो सुरभित करती ,सुमन सुशोभित क्यारी है ।
त्याग ,समर्पण ,दया,शीलता ,से मिलकर नारी बनती ।
कभी तोड़ने अहं दुष्ट का ,चंडी रूप धरा करती ।
भिन्न -भिन्न रुपों को धारे ,नव दुर्गा अवतारी है ।
घर -आँगन जो सुरभित करती ,सुमन सुशोभित क्यारी है ।
नारी है बहते पानी सम ,हर स्थिति में ढल जाती ।
पुत्र पले जब लाड़ चाव से ,पुत्री यूँ ही पल जाती ।
जननी भी है जग पालक भी ,नहीं किसी क्षण हारी है।
घर -आँगन जो सुरभित करती ,सुमन सुशोभित क्यारी है ।
नमन करें इस महा शक्ति को ,वंदन प्रेम प्रदाता को ।
संस्कार शाला नारी को ,अखिल विश्व की ज्ञाता को ।
इस दुलार के कर्जदार हम ,बार- बार आभारी हैं।
घर -आँगन जो सुरभित करती ,सुमन सुशोभित क्यारी है ।
— रीना गोयल ( हरियाणा)