व्यंग्य – आम आदमी का आक्रोश
आम आदमी कई दिनों से पानी की कमी से जूझ रहा था। जूझ ही नहीं रहा था बल्कि जुगाड़ भी कर रहा था। बंद पड़े मकानों की दीवारों को फांदकर म-रियल आम आदमी पानी की बाल्टियां भर भर के अपने साहस की परकाष्ठा का प्रदर्शन कर रहा था। एक नहीं, दो नहीं, लगातार सात दिन तक संघर्ष करके आम आदमी का सूखे हुए आम जैसा हाल (बेहाल) हो गया था। अब उसने आम आदमी से खूंखार आदमी का रूप धारण कर लिया था। तीसरी में तीन बार फेल आम आदमी के पास भले किताबी ज्ञान शून्य के बराबर था लेकिन वह व्यावहारिक ज्ञान के मामले में तुर्रम खां था। इसलिए उसके दिमाग ने शीघ्र ही एक युक्ति सुझा ली। जब घी सीधी उंगली से ना निकले तो उंगली टेढ़ी करनी पड़ती है। लेकिन एक्स्ट्रा ऑर्डिनरी आम आदमी ने अपनी उंगलियों को खोला, पत्थर उठाया और घर के नल को तोड़ने के लिए चल पड़ा।
आम आदमी का ये आक्रोश देख पत्नी दूर से चिल्ला पड़ी – ‘ये क्या कर रहे हो? दीमाग को दिल्ली छोड़ आए हो क्या? अपने ही घर के पत्थर से अपने ही घर के नल का नुकसान करोगे? यदि नल तोड़ने का इतना ही शौक चढ़ा है तो मोहल्ले का नल तोड़ो ताकि लोगों को तुम्हारे आक्रोश का अंदाजा लग सके। अब आम आदमी मोहल्ले के नल को तोड़ने के लिए निकल पड़ा। उसी तैश की मुद्रा में वह नल के समीप जा पहुंचा। पत्थर को पूरे वेग के साथ नल को नगर पालिका के चेयरमैन का माथा समझकर तोड़ने ही वाला था कि तभी नल के अंदर से पानी की फुहार होने लगी। पानी की धार देखकर आम आदमी का आक्रोश पानी-पानी हो गया। वह अत्यंत ही प्रसन्नचित्त होकर नाचने लगा। आम आदमी के आक्रोश के आगे बड़ी-बड़ी सत्ताएं ध्वस्त होकर धूल चाटने लगती है तो ये तो बेचारा मामूली नल था। कैसे अपने गुप्त कोने में दबोचा पानी बाहर नहीं आने देता। आम आदमी नल से बाल्टी भरकर जैसे ही घर जाने की ओर मुड़ा तभी नेताजी की गाड़ी आ धमकी। नेताजी ने गाड़ी से उतर पांव जमीन पर धरे और आम आदमी की ओर चले पड़े।
आम आदमी से बोल पड़े – ‘अबकि बार वोट हमें ही देना। देखो हमारे आते ही तुम्हारे सूखे पड़े नल में से पानी की धार बहने लगी। अगर एक बार हम सत्ता में आ गए तो घर के नल में पानी की जगह दूध की धार बहने लगेगी। पूरे मोहल्ले को बता देना कि अबकि बार वोट हमें यानी सेवकलाल को ही दें। नेताजी के जाते ही आम आदमी पुन: घर की ओर जाने लगा तो नल ने पीछे से आवाज दी – ‘रे ! आम आदमी क्यों हमें पत्थर से धमकाते हो? हम तो खुद भी भरी जवानी में बिना पानी के जिंदा नहीं रहना चाहते। नल के पास यदि पानी नहीं तो वह कैसा नल? तुम्हें यदि आक्रोश दिखाना ही तो यहां नहीं बल्कि वहां दिखाओ, जहां से तुम्हें सताने का षड्यंत्र रचा जाता है। वहां कहां? वहां का पता लगाने से पहले से आम आदमी ठंडा पड़ चुका था।