तीन प्रश्न और नानक जी के उत्तर
बग़दाद के एक शहर में पीर दस्तगीर का महल था । दस्तगीर अक्सर अपने में ही मगन रहते थे । एक दिन उनकी बेगम ने कहा की आप किसी गहरी सोच में डूबे रहते हैं आखिर ऐसी क्या बात है ? क्या बताऊँ बेगम कुछ अनसुलझी पहेलियों को सुलझाने में लगा रहता हूँ । पता नहीं यह पहेलियाँ सुलझेंगी भी की नहीं, या मेरी मौत के साथ ही दफ़न हो जाएंगी ।
उन्हीं दिनों गुरु नानक देव जी मक्का मदीना की यात्रा करने के बाद बग़दाद पहुंचे । सुबह का वक़्त था सुहानी हवाएं चल रही थी । गुरु जी मर्दाना के साथ एक पेड़ के नीचे बैठ गए । मर्दाना जी रबाब बजाते रहे और गुरु जी वहां प्रवचन करने लगे । मुस्लिम बड़ा है न हिंदु बड़ा है, सबसे बड़ा धर्म इंसानियत है । एक ज्योति है सबके अंदर, न कोई ऊँचा न कोई नीचे । इतने में दस्तगीर के सिपाही वहां से गुजरे उन्होंने जब गुरु जी के प्रवचन सुने तो उन्हें गुस्सा आ गया ।
उन्होंने गुरु जी से कहा ? ए फ़क़ीर क्या कह रहे हो अल्लाह बड़ा नहीं और इंसानियत बड़ी है ? कुछ हिंदु भी वहां इकट्ठे हो गए हिंदु कहने लगे नहीं ईश्वर बड़ा है; मुस्लिम कहने लगे नहीं अल्लाह बड़ा है। वहां बहुत भीड़ इक्कठी हो गयी, कुछ लोग गुरु जी के पक्ष में हो गए कुछ उनके विरुद्ध ।
पीर दस्तगीर के सिपाही गुरु जी और मर्दाना जी को पकड़कर दस्तगीर के दरबार में ले गए । सिपाही ने दस्तगीर के सामने पहुंचकर कहा “इसका शिष्य रबाब बजा रहा था और यह फ़क़ीर प्रवचन करके हिंदु मुसलमान में झगड़ा करवा रहा है ।
ए फ़क़ीर तुम लोग बग़दाद की धरती पर रबाब बजा रहे हो, तुम किस धर्म से हो? तुम्हें नहीं पता की शरियत के मुताबिक किसी भी तरह का संगीत इस्लामी देशों में प्रतिबंधित है। ‘संगीत तो आत्मा को परमात्मा से जोड़ता है’ नानक जी ने बड़े आदर से कहा । ‘परमात्मा तो स्वयं सबसे बड़ा संगीतकार है । जब नदियाँ कल कल बहती हैं, जब हवाएं चलती हैं जब पक्षी चह चाहते हैं तो क्या उसका संगीत मन को नहीं भाता ? जब उस परम पिता ईश्वर ने हमें इतने सारे संगीत दिए हैं तो उस परम पिता के लिए संगीत बजाना गलत कैसे हो गया ?’
बातें तो तुम बहुत बड़ी बड़ी करते हो पर आज तुम्हें या तो सजा मिलेगी या ईनाम । कुछ वर्षों से मेरी जिंदगी अजीब कश्मकश में गुजर रही है । मेरे मन में चल रहे कुछ प्रश्न मुझे सोने नहीं देते । यदि तुम मेरे प्रश्नो के उत्तर ठीक ठीक देते हो तो मैं तुम्हें बख्श दूंगा अन्यथा तुम्हें सजा मिलेगी। गुरु जी बोले- ‘हर काम के पूर्ण होने का निश्चित समय होता है । पूछो क्या पूछना चाहते हो ।’
मेरा पहला प्रश्न: अगर खुदा ने दुनिया को बनाया है तो खुदा को किसने बनाया है ? मेरा दूसरा प्रश्न: खुदा रहता कहाँ है ? मेरा तीसरा प्रश्न: खुदा करता क्या है ?
नानक जी ने कहा तुम्हारे प्रश्न का उत्तर तुम्हारे लिए ही नहीं सम्पूर्ण मानवता के लिए जरूरी है । मुझे मालुम है की तुम यहां के आध्यात्मिक गुरु हो लोग तुम्हारा बहुत आदर करते हैं, तुम्हें हीरे जवाहरात सोने के सिक्के भी देते हैं । मैं चाहता हूँ तुम यह सब यहां मंगवाओ । पीर दस्तगीर यह सुनकर अचम्भे में आ गए । सोचने लगे यह कैसा फ़क़ीर है अभी तक तो एक भी प्रश्न का उत्तर नहीं दिया और मेरी दौलत मंगवाने लगा है । पर मेरे लिए इन प्रश्नो का उत्तर जानना बहुत जरूरी है ।
पीर दस्तगीर बोले- जैसा फ़क़ीर कह रहे हैं वैसा ही हो । सारी दौलत पोटलियों में भरकर वहां लाई गयी । गुरु जी बोले अब यह सोने के सिक्कों की पोटलियों को गिनो । पीर दस्तगीर सोने के सिक्के गिनने लगे, एक दो तीन चार । बस बस रुक जाओ तुम्हें गिनती नहीं आती फिर से गिनो, गुरु जी ने कहा । पीर दस्तगीर ने सोचा सही तो गिन रहा था, पता नहीं क्या गलती हुई है । फिर से गिनता हूँ एक दो तीन …..। बस यहीं पर रुक जाओ, तुम्हारा गणित कमजोर है, तुम्हें सही गिनती नहीं आती, नानक जी ने फिर उसे रोक दिया ।
ओ फ़क़ीर मुझे तो समझ नहीं आ रहा मैंने क्या गलती की है । अगर आपको लगता है की मैंने गलती की है तो मुझे वही रोक देना जहां मैं गलती करूँ। उसने फिर से गिनना शुरू किया। जैसे ही उसने गिनना शुरू किया एक ‘यहीं रुक जाओ’ गुरु जी ने कहा ओ फ़क़ीर मुझे तो समझ नहीं आ रहा मैंने क्या गलती की है । एक से ही तो शुरू करूंगा । नहीं नहीं एक से पहले से शुरू करो नानक जी ने कहा । ओ फ़क़ीर क्या बात करते हो एक से पहले तो कुछ नहीं होता । मैं भी तुम्हें यही समझाना चाहता हूँ एक से पहले तो कुछ नहीं होता नानक जी ने जवाब दिया । एक से ही सब शुरू होता है, हमें बनाने वाला एक है, धरती चलाने वाला और मिटाने वाला भी एक है । पीर दस्तगीर यह सुनकर हैरान हो गए और बोले- ओ फ़क़ीर तुमने बिलकुल सही कहा मानो मेरे दिल से कुछ बोझ कम हो गया है ।
अब मुझे बताएं कि वह रहता कहाँ है ? इस्लाम में तो कहते हैं वह धरती से सात आसमान ऊंचा रहता है । गुरु जी ने कहा दूध से भरा हुआ एक बर्तन लाओ। जी फ़क़ीर मैं अभी मंगवाता हूँ। दूध आने के बाद गुरु जी ने पीर दस्तगीर से पूछा- तुम्हें इस दूध में क्या दिखाई देता है? ओ फ़क़ीर यह कैसा प्रश्न है ? दूध तो दूध जैसा ही दिखाई देगा । इसमें ऐसा क्या है ? गुरु जी बोले क्या इसमें मक्खन है ? हाँ मक्खन तो इसमें है। क्या तुम्हें मक्खन दिखाई दे रहा है ? दिखता तो नहीं पर है जरूर । इस दूध की एक एक बूँद में मक्खन है पर वह हमारी आँखों से दिखता नहीं है । वैसे ही धरती के कण कण में खुदा है । जैसे दूध से मक्खन निकालने के लिए मेहनत करनी पड़ती है, तब वह सामने आता है उसी तरह से जब आत्मा परमात्मा से मिल जाती है तो परम पिता परमेश्वर दिखाई पड़ता है। मेरे पास शब्द नहीं हैं मैं अपनी ख़ुशी को कैसे बयान करूँ, दस्तगीर बहुत खुश हुआ ।
अब मेरे आखिरी प्रश्न का उत्तर दे दो । वह करता क्या है उसका क्या काम है ? मैं तुम्हारे एक एक प्रश्न का उत्तर दे रहा हूँ, पर तुम मेरा अनादर कर रहे हो । नहीं फ़क़ीर नहीं ऐसा तो मैं सपने में भी नहीं सोच सकता। आप को ऐसा क्यों लग रहा है की मैं आपका अनादर कर रहा हूँ ?
जब कोई तुम्हें तुम्हारे प्रश्नो का उत्तर दे रहा होता है तो वह तुम्हारे गुरु के तुल्य होता है, पर तुम अपने गुरु के सामने सोने के जड़े सिंहासन पर बैठे हो और तुम्हारे गुरु तुम्हारे सामने खड़े हैं यह अनादर नहीं तो और क्या है ? बस इतनी सी बात मैं आपकी जगह में आ जाता हूँ आप मेरे सिंहासन पर आ जाएँ । गुरु जी वहां सिंहासन पर थोड़ी देर तक चुपचाप बैठे रहे । कुछ तो बोलो मेरे तीसरे प्रश्न का जवाब दो मैं उत्तर सुनने के लिए तरस रहा हूँ कि वह करता क्या है । ‘वह एक क्षण में राजा को फ़क़ीर और फ़क़ीर को राजा बना सकता है जैसा अभी तुम्हारे साथ हुआ, यही खुदा करता है’। दस्तगीर नानक जी के चरणों में गिर गया ।
आदरणीय गुरमेल जी, बहुत बहुत धन्यवाद. गुरु नानक जी की साखियों में ऐसी कई
आश्चर्यजनक बाते हैं चाहता हूँ की अधिक से अधिक लोग जानें ।
बहुत अछि शिक्षा देने वाली कथा आप ने लिखी है रवेंदर भाई .