गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल – फासले बेकरार करते हैं

फासले    बेकरार    करते   हैं ।
और   हम   इतंजार   करते   हैं ।।

इक तबस्सुम को लोग जाने क्यूँ ।
क़ातिलों  में   शुमार   करते   हैं ।।

सिर्फ धोखा मिला ज़माने से ।
जब भी हम ऐतबार करते हैं ।।

मैं तो इज्ज़त बचा के चलता हूँ ।
और वह तार तार करते हैं ।।

उनको गफ़लत हुई यही यारो ।
इश्क़ हम से हजार करते हैं ।।

हुस्न की बेसबब नुमाइश कर ।
गुल खिंजा को बहार करते हैं।।

अब मुहब्बत की बात क्या करना ।
जब वो खंजर पे धार करते हैं ।।

हाले दिल अब न पूछिये हमसे ।
आप तो इश्तिहार करते हैं ।।

कितने शातिर हैं शह्र वाले ये ।
पीठ पे रोज वार करते हैं ।।

बेचते अब ज़मीर दौलत पर ।
वो यही कारोबार करते हैं ।।

कुछ वफाओं का वास्ता देकर ।
लोग दिल का शिकार करते हैं ।।

— डॉ नवीन मणि त्रिपाठी

*नवीन मणि त्रिपाठी

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