राजनीति

सत्ता पक्ष व विपक्ष की नयी चुनौतियां

मोदी सरकार का यह दूसरा कार्यकाल है।
 यह वक्त नई चुनौतियों से भरा होगा। ऐसे में सरकार को बेरोजगारी के मुद्दे पर लड़ना होगा, यानी रोजगार पैदा करने के तरीकों पर ध्यान देना होगा। 45 साल में बेरोजगारी का सर्वाधिक उच्च दर इस समय है।
उद्यमियों को प्रोत्साहन देना ताकि नई नौकरियां पैदा कर सकें, बेरोजगारों को रोजगार मिल सके।
पड़ोसी देशों से अच्छे रिश्ते बनाना इसके साथ ही अमेरिका और चीन के व्यापारिक रिश्ते के कारण भारत पर नकारात्मक असर पड़ेगा, इसका फायदा जापान और साउथ कोरिया उठा सकते हैं। भारत को अपने लाभ की दिशा में प्रयास करने की जरूरत है।
लोगों में तर्क और विज्ञान के प्रति जागरूकता की आवश्यकता है, इसके लिए अच्छी शिक्षा व्यवस्था जरूरी है। नई शिक्षा नीति का विजन और सभी को उच्च गुणवत्ता वाली समान शिक्षा के लिए भी पहल करना जरूरी है। किसान देश की रीढ़ हैं और उनकी आय 2022 तक दुगनी करने के अपने वादों को निभाने के लिए सही रणनीति बनाना होगा।
 इवेंट्स और रैली का समय गया। इस बार मेनिफेस्टो के वादों को पूरा करना है। इसके लिए जनता की आस पर खरा उतरना होगा।
विपक्ष केवल सत्ता पक्ष के गलतियों को जनता के आक्रोश को देख कर अपने लिए जीत की आशा बना रखी थी, बिना ठोस रणनीति के इस बार उनके हार का कारण बना। जनता ने स्थाई सरकार के लिए मोदी सरकार को दोबारा चुना है।
 कांग्रेस केवल चुनाव के समय ही सक्रिय होती है।प्रियंका व राहुल गांधी की इस नीति को जनता पसंद नहीं करती है।
कमजोर विपक्ष सत्तापक्ष के लिए संजीवनी वटी का काम करता है। कांग्रेस के अंदर तीन तरह की कांग्रेस है, पहले इसे हटाना होगा।
पहला पहले दौर के यानी इंदिरा गांधी के समय की कांग्रेस, जिसमें  मोतीलाल वोरा व एके एंटोनी हैं।
 दूसरे दौर के दूसरा कांग्रेस, संजय गांधी के समय यानी की आपातकालीन समय के नेता गुलाम नबी, अशोक गहलोत, कमलनाथ व आनंद शर्मा हैं। जिन्होंने कभी जमीनी स्तर पर संघर्ष नहीं किया, कोई आंदोलन नहीं किया। यही सबसे बड़ी समस्या कांग्रेस की है। इन नेताओं से कांग्रेस को सबसे अधिक नुकसान हुआ है। राहुल गांधी ने खुद को इन नेताओं से घेर लिया है।
तीसरे दौर तीसरी कांग्रेस राहुल गांधी की टीम हैं, जो अपने पिताओं की वजह से है यानी कि वंश की बैसाखी के कारण वे राजनीति में आए हैं। इनमें रणदीप सिंह सुरजेवाला, सचिन पायलट, प्रियंका गांधी, ज्योतिराज सिंधिया आदि तमाम ऐसे कांग्रेसी नेता हैं, जो संघर्ष की प्रक्रिया से नहीं आए हैं। छतरी वाले नेताओं से अलग राहुल को एक नई टीम बनाना होगा। कांग्रेस को संगठन सशक्त करने के लिए निचले स्तर से काम करना होगा, न कि समय का इंतजार करना। सत्ता हासिल करने के लिए लगातार संघर्ष की जरूरत होती है। कांग्रेस पार्टी के लिए यही मुसीबत है कि वह सत्ता की चाबी सत्ता पक्ष की विफलता से हासिल करना चाहती है। देश की राजनीति में ये पांच साल बहुत दिलचस्प होगा कि क्या सत्ता पक्ष अपने वादे के प्रति वफादार रहती है, वहीं विपक्ष मजबूत विपक्ष बनकर सत्ता हासिल करने के लिए लगातार संघर्ष कर पाती है कि नहीं।
— अभिषेक कांत पांडेय

अभिषेक कांत पाण्डेय

हिंदी भाषा में परास्नातक, पत्रकारिता में परास्नातक, शिक्षा में स्नातक, डबल बीए (हिंदी संस्कृत राजनीति विज्ञान दर्शनशास्त्र प्राचीन इतिहास एवं अर्थशास्त्र में) । सम्मानित पत्र—पत्रिकाओं में पत्रकारिता का अनुभव एवं राजनैतिक, आर्थिक, शैक्षिक व सामाजिक विषयों पर लेखन कार्य। कविता, कहानी व समीक्षा लेखन। वर्तमान में न्यू इंडिया प्रहर मैग्जीन में समाचार संपादक।