गीतिका/ग़ज़ल

धड़कने न बढ़ाओ प्रिये

नज़र से नज़र न मिलाओ प्रिये
यूँ धड़कने मेरी न बढ़ाओ प्रिये।
बढ़ने लगें दिलों की बेचैनियाँ
हाले दिल भी न सुनाओ प्रिये।
अभी जीना है चैन,सुकूँ से हमें
इश्क़ की आग न जलाओ प्रिये।
बहकने लगें यह कदम भी मेरे
जाम आखों से न पिलाओ प्रिये।
मिल पाना कभी भी संभव नहीं
कोरे सपने तुम न सजाओ प्रिये।
तड़पने लगें एक दूसरे के लिए
इतना भी करीब न आओ प्रिये।
आशीष तिवारी निर्मल

*आशीष तिवारी निर्मल

व्यंग्यकार लालगाँव,रीवा,म.प्र. 9399394911 8602929616