धड़कने न बढ़ाओ प्रिये
नज़र से नज़र न मिलाओ प्रिये
यूँ धड़कने मेरी न बढ़ाओ प्रिये।
बढ़ने लगें दिलों की बेचैनियाँ
हाले दिल भी न सुनाओ प्रिये।
अभी जीना है चैन,सुकूँ से हमें
इश्क़ की आग न जलाओ प्रिये।
बहकने लगें यह कदम भी मेरे
जाम आखों से न पिलाओ प्रिये।
मिल पाना कभी भी संभव नहीं
कोरे सपने तुम न सजाओ प्रिये।
तड़पने लगें एक दूसरे के लिए
इतना भी करीब न आओ प्रिये।
— आशीष तिवारी निर्मल